अपना कस्बा छोड़ मैं शहर की तरफ आया। वहाँ एक मकान खरीदकर रहने लगा हा मकान ही था वो घर नहीं था, घर बनता है उसके अंदर बसने वाले लोगों से और एक पत्नी नाम की औरत से। उसके साथ कोई भी नहीं है, वो पूरी तरीके से उस अजनबी शहर में अकेला है। और दम तोड़ता शहर भी कहीं ना कहीं अकेला है। ये कहानी है लढते - लढते संघर्ष करते उन चेहरों की जो कहिना कहीं अकेले है।