हुस्न का गुमान
घमण्ड है अमीरी का या हुस्न का गुमान है,
शायद मेरी दिल्लगी तुम पर मेरा एहसान है।
झूमता हूँ मैं नहीं मयखाने की तासीर से,
अब तो मेरी आँखों में बस इश्क का परवान है।।
इक तरफ से चमचमाती है तु हीरे नूर की,
इक तरफ से गर्त सी है आयनाए हुर की।
है मेरा उम्मीद छोटा, पर बृहद अरमान है
घमण्ड है अमीरी का या खुद पर बहुत गुमान है।।
मानता हूं प्यार ना करती थी तु मुझसे कभी,
अब समझ में आया है क्यूँ हँसते थे मुझपर सभी।
हुस्न तेरी ये धरा, तो इश्क मेरा आसमान है
घमण्ड है अमीरी का या खुद पर बहुत गुमान है।।
याद है बरगद की डाली और मैं तेरे साथ था
तेरे मलमल के दुपट्टे में बंधा मेरा हाथ था
याद है तुम ने कहा था आ कर मेरे कानों में
की तुम ही मेरा जिन्दगी अब तुम ही मेरा जान है
घमण्ड है अमीरी का या हुस्न का गुमान है
प्रेम है मन का समर्पण,आत्मसात और बन्दगी,
हो गये कितने ही काफिर न्यौछावर कर जिंदगी।
वेदों का सन्देश है यही, कहती यही कुरान है
घमण्ड है अमीरी का या खुद पर बहुत गुमान है।।
गोपाल मिश्रा