shabd-logo

हुस्न का गुमान

6 सितम्बर 2015

274 बार देखा गया 274
हुस्न का गुमान घमण्ड है अमीरी का या हुस्न का गुमान है, शायद मेरी दिल्लगी तुम पर मेरा एहसान है। झूमता हूँ मैं नहीं मयखाने की तासीर से, अब तो मेरी आँखों में बस इश्क का परवान है।। इक तरफ से चमचमाती है तु हीरे नूर की, इक तरफ से गर्त सी है आयनाए हुर की। है मेरा उम्मीद छोटा, पर बृहद अरमान है घमण्ड है अमीरी का या खुद पर बहुत गुमान है।। मानता हूं प्यार ना करती थी तु मुझसे कभी, अब समझ में आया है क्यूँ हँसते थे मुझपर सभी। हुस्न तेरी ये धरा, तो इश्क मेरा आसमान है घमण्ड है अमीरी का या खुद पर बहुत गुमान है।। याद है बरगद की डाली और मैं तेरे साथ था तेरे मलमल के दुपट्टे में बंधा मेरा हाथ था याद है तुम ने कहा था आ कर मेरे कानों में की तुम ही मेरा जिन्दगी अब तुम ही मेरा जान है घमण्ड है अमीरी का या हुस्न का गुमान है प्रेम है मन का समर्पण,आत्मसात और बन्दगी, हो गये कितने ही काफिर न्यौछावर कर जिंदगी। वेदों का सन्देश है यही, कहती यही कुरान है घमण्ड है अमीरी का या खुद पर बहुत गुमान है।। गोपाल मिश्रा
5
रचनाएँ
aacharyagopalmishra
0.0
अपने दिल के भावनाओं को शब्द के रूप में उतारने का छोटा सा प्रयत्न किया हूँ शायद आप लोग के दिल को छू सकूँ ।
1

हुस्न का गुमान

11 मई 2015
0
1
0

मेरी दूसरी कविता

2

हुस्न का गुमान

12 मई 2015
0
0
0

इस कविता के माध्यम से कवि अपने प्रेमिका के दोहरे स्वरूप का वर्णन किया है

3

नन्ही सी अभिलाषा

6 सितम्बर 2015
0
0
0

नन्ही सी अभिलाषादेखकर मुझे क्यों मुँह मोड़ लेते हो,हाथ तेरा थामती हूँ तो क्यों छोड़ देते हो। मेरी कुंठित व्यथा को सुनो, मैं भी एक इंसान हुँ, पापा जी , मैं भी तो आप ही की संतान हुँ।।मैं तो कभी भी नई खिलौने नहीं माँगती, मेला में जाने की जिद भी नहीं बांधती। घर की जुठा खा कर भी झाडू-पोछा कर लेती हूँ, आ

4

हुस्न का गुमान

6 सितम्बर 2015
0
0
0

हुस्न का गुमानघमण्ड है अमीरी का या हुस्न का गुमान है, शायद मेरी दिल्लगी तुम पर मेरा एहसान है। झूमता हूँ मैं नहीं मयखाने की तासीर से, अब तो मेरी आँखों में बस इश्क का परवान है।।इक तरफ से चमचमाती है तु हीरे नूर की, इक तरफ से गर्त सी है आयनाए हुर की। है मेरा उम्मीद छोटा, पर बृहद अरमान है घमण्ड है अमीरी

5

मूक की पुकार

6 सितम्बर 2015
0
0
0

मूक की पुकारइसमें मेरी क्या गलती थी, जो तेरे कोख में आई थी। क्यंु मार दिया मुझको निर्मम अभी दूनिया देख ना पाई थी।।मेरे अपने ऐसे होंगे, सपनों में भी नहीं सोची थी। बेटी नहीं बनना है मुझको, भगवान को भी मैं रोकी थी।। पापा भी तो बैठे थे वहां, वहीं बैठी बुढी ताई थी। क्यंु मार दिया मुझको निर्मम,अभ

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए