मूक की पुकार
इसमें मेरी क्या गलती थी,
जो तेरे कोख में आई थी।
क्यंु मार दिया मुझको निर्मम
अभी दूनिया देख ना पाई थी।।
मेरे अपने ऐसे होंगे,
सपनों में भी नहीं सोची थी।
बेटी नहीं बनना है मुझको,
भगवान को भी मैं रोकी थी।।
पापा भी तो बैठे थे वहां,
वहीं बैठी बुढी ताई थी।
क्यंु मार दिया मुझको निर्मम,
अभी दूनिया देख ना पाई थी।।
मैं रोती रही चिल्लाते रही,
पीड़ा बेधन की सह ना सकी।
मत मारो मुझे, मत मारो मुझे,
ये बात किसी को कह ना सकी।।
हुँ विष पिया, क्या ऐसा किया,
क्या इतनी मैं हरजाई थी।।
क्यों मार दिया मुझको निर्मम,
अभी दूनिया देख ना पाई थी।।
गोपाल मिश्रा