मई का महीना
ख़त्म होने वाला
है और जैसे-जैसे जून-जुलाई का महीना
आ रहा है,
एक ख़ास इंडस्ट्री
के सभी लोग
अचानक से 200 गुना
ज्यादा प्रोडक्टिव हो गए
हैं.और आखिर
हो भी क्यूँ
न, बस जून-जुलाई आते-आते
उनको ये जो
पता चलने वाला
है की उनका
प्रमोशन होगा या
नहीं, सैलरी बढ़ेगी
या नहीं, या
प्रमोशन तो हो
जायेगा लेकिन सैलरी इन्क्रीमेंट
के नाम पे
थमा दिया जायेगा
ठेंगा. की लो
भाई, बहुत इन्क्रीमेंट
माँग रहे थे
न, तो ये
लो 0.005 % का इन्क्रीमेंट
वाला अँगूठा और
चूसते रहो अगले
साल तक.
ये भी एक
मौसम है. जैसे
सावन है, भादो
है, समर है,
विंटर है, वैसे
ही ये भी
एक है, जो
साल में एक
बार 3-4 महीने के लिए
आता है. इसकी
शुरुआत होती है
ठण्ड का मौसम
ख़त्म होने के
बाद, यानि की
लगभग फरवरी के
अंत से, लेकिन
इसका अंत होता
है भीषण गर्मी
में, माने की
जून के आखिरी
और जुलाई के
पहले सप्ताह में.
जैसे मौसम कि
शुरुआत होते ही
फसल के बीज
बाँटे जाते हैं,
बोने के लिए
,वैसे ही इस
मौसम की शुरुआत
होते ही खेत
का मालिक जिसको
मैनेजर, सुपरवाइजर आदि कई
नामों से जाना
जाता है, मजदूरों
को commitments, goals,
achievements जैसे कुछ बीज
देता है बोने
को. जिसको मजदूर
मर्जी, बिना मर्जी,
देखे, बिना देखे
(समझने की तो
बात हि छोड़
दीजिये) बो देते
हैं. लेकिन इन
बीजों और एक
किसान के बीज
में फर्क बस
यही होता है
कि किसान को
उसके फसल के
बारे में 4 महीने
बाद ही पता
चलता है, की
भाई फसल कैसी
होगी, दाने कैसे
होंगे, कुछ बचेगा
भी हमारे लिए
या सब साहूकार
ही ले जायेंगे.
लेकिन इन मजदूरों
को दिए गए
बीज से इनकी
फसल का कोई
लेना देना नहीं
होता है. कई
बार तो बीज
हाथ में आने
के पहले ही
फसल कट चुकी
होती है.
इस मौसम की
सबसे ख़ास बात
ये है की
ये आपस में
भाईचारा अचानक से बढ़ा
देता है. वो
मजदूर जिसने कभी
अपने खेत के
मालिक से सीधे
मुँह बात तक
नहीं की, अचानक
से वो उसकी
हर बात सुनने
और समझने लगता
है. साथ-साथ
घूमने लगता है,
धुम्रपान और मदिरापान
के लिए अपने
मालिक को आमंत्रित
करने लगता है
और उसके आमंत्रण
पे बिना समय
गँवाए हाँ बोल
देता है. अपनी
गाड़ी का पेट्रोल
जलाकर अपने मालिक
को ऑफिस से
घर और घर
से ऑफिस लाने
ले जाने का
काम करता है.उसके बच्चों
की फोटो को
क्यूट, स्वीट और न
जाने क्या-क्या
बोलता है. उसके
हर फेसबुक पोस्ट
को लाइक करता
है और जरुरत
लगे तो शेयर
करना भी नहीं
भूलता है.
ये मौसम सेंस
ऑफ़ ह्यूमर को
भी बड़ा फायदा
पँहुचाने वाला होता
है. जिस मालिक
के सड़े हुए
जोक्स उसके मजदूरों
को आजतक नहीं
समझ आये, वो
जोक्स अचानक से
ही सब के
सब मजदूरों को
समझ आने लगते
हैं, उसके मरेले
जोक्स पर मजदूर
अपने पुरे दाँत
और आँत सब
निकाल कर हँसने
लगते है. जहाँ-जहाँ से
मालिक के चरण
गुजरते हैं, वहाँ-वहाँ हँसी
और ठहाको कि
गूँज सुनाई देने
लगती है. ये
मौसम लोगों के
काम करने की
क्षमता भी बढ़ा
देता है. जहाँ
और मौसमों में
मजदूर मालिक से
छुपा कर अपना
कुदाल उठा खेत
से निकल लेते
थे, इस मौसम
में अचानक से
वो लोग सूरज
ढलने के बाद
भी खेतों में
काम करते दीखते
हैं. ऐसा लगता
है मानो इन
तीन महीनो में
इंडिया, जापान को तो
पीछे छोड़ ही
देगा.
लेकिन जैसे-जैसे
कटनी के दिन
नजदीक आते जा
रहे हैं, मजदूरों
के दिमाग में
टेंसन बढती जा
रही है. हर
जगह एक ही
बात हो रही
है की भाई
फसल कैसी होगी.
सिगरेट की टपरी
पे, निम्बू-जलजीरा
के ठेले पे,
वडा-पाव के
स्टाल पे और
कैंटीन के टेबल
पे, हर जगह
बस एक ही
बात हो रही
है की भाई
hike मिलेगा की ठेंगा.
कुछ क्रांतिकारी विचारधारा
के मजदूर जहाँ
कानून को अपने
हाथ में लेने
की सोचने लगे
हैं वहीँ सदियों
से दबे-कुचले
कुछ मजदूर गाँव
छोड़ कहीं और
बसने की बातें
करने लगे हैं.
अब इन्हें कौन
बताये की इनकी
फसल कट चुकी
है और चाहे
जिस गाँव में
जाये, चूसने को
तो मिलेगा ठेंगा
ही.
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