नहीं चाह तन की, ना धन चाहिए
सुरक्षित धरा व गगन चाहिए ।
लिया जन्म जिसमें , मेरी मातृभूमि
हिफाजत करूं यह लगन चाहिए ।।
सींचा लहू से जमीं को है हमने
जश्ने-आजादी दिया हमको जिसने ।
रणबांकुरों की शहादत की खातिर
वीरों को श्रद्धासुमन चाहिए ।।
ऊंचा हिमालय बना जिसका प्रहरी
गंगा-जमुन की पतित पावन लहरें।
सागर सा गहरा भरा जोश मन में
निर्भय निडर बस हृदय चाहिए।।
धर्म व मजहब की ना हों दिवारें
रहे तो रहे बस यहां भाईचारे ।
खिले फूल जिसमें दया-प्रेम-हित के
सुंदर सा प्यारा चमन चाहिए ।।
खेतों में उपजे सदा हीरे-मोती
धन-धान्य समृद्ध वतन चाहिए।
मिले हर किसी को यहां सुख की रोटी
सुख-शांति एक अमन चाहिए ।।
समर्पित सदा राष्ट्र के प्रति यह तन हो
ना कोई हो इच्छा , ना वसन चाहिए।
जिएंगे तो जिएं मातृभूमि पर अपने
मरूं तो तिरंगा कफ़न चाहिए ।। *-----------