चयनित और प्रिय अलमुस्तफा, जिनके दिन का आरंभ हो चुका था, ने अपने उस जहाज का अरफलेस नगर में बारह वर्षों तक इंतजार किया था, जिसे वापस ऑकर उन्हें उनके उस द्वीप में वापस ले जाना था, जहाँ उनका जन्म हुआ था।
और बारहवें वर्ष में, आइलूल के सातवें दिन, जो कटाई का महीना होता है, वे नगर की दीवार का सहारा लिये बिना ही पहाड़ी पर चढ़ गए और समुद्र की ओर देखा। उन्होंने देखा कि उनका जहाज धुंध के साथ आ रहा था।
तभी हृदय का द्वार तेजी से खुल गया और उनकी खुशी समुद्र के ऊपर उड़ गई। उन्होंने अपनी आँखें बंद कीं और अपनी आत्मा की शांति में प्रार्थना की।
लेकिन वे जैसे ही पहाड़ी से उतरे, उन्हें अचानक दुःख महसूस हुआ और उन्होंने अपने मन में सोचा- मुझे शांति कैसे मिलेगी और वह
भी दुःख के बिना? नहीं, आत्मा पर कोई आघात लिये बिना ही मैं इस शहर को छोडूंगा। दुःख के वे दिन लंबे थे, जो मैंने इन दीवारों के बीच गुजारे हैं; मैं अकेलेपन की रातें भी लंबी थीं; कौन अपने दुःख और अकेलेपन को बिना पछतावे के छोड़ सकता है?
आत्मा के अनेक टुकड़े मैंने उन गलियों में बिखराए हैं और अनेक तो मेरी इच्छा के नतीजे हैं, जो इन पहाड़ियों पर नंगे भटकती रही हैं और बिना किसी बोझ और पीड़ा के मैं उनसे अलग नहीं हो सकता।
यह कोई पोशाक नहीं है, जिसे मैं आज उतार दूँ, बल्कि यह चमड़ी है, जिसे मैं अपने हाथों से खरोंचता हूँ।
न ही यह कोई विचार है, जिससे मैं पीछा छुड़ा लूँ, बल्कि भूख और प्यास की तड़प से मीठा बना एक दिल है।
फिर भी मैं ज्यादा देर रुक नहीं सकता।
समुद्र, जो हर चीज को अपनी ओर आकर्षित करता है, वह मुझे पुकारता है और मुझे पोतारोहण करना चाहिए। रुकने के लिए यद्यपि रात में बिताया गया समय व्यर्थ होकर निश्चित रूप लेगा और उसका एक स्वभाव बनना निश्चित है। यहाँ जो कुछ भी है, मैं उसे प्रसन्नता के साथ ले जाऊँगा; लेकिन मैं कैसे ले जाऊँगा?
आवाज, जिसे उत्पन्न करने में जीभ और होंठ सहायक होते हैं, वही आवाज उन होंठों और जीभ को ढो नहीं सकती है। इसे अकेले ही
वायु ढूँढ़ना चाहिए।
और अकेले ही बिना अपने घोंसले चील को उड़कर सूर्य को पार करना पड़ेगा। अब जबकि वह पहाड़ की तराई में पहुँच चुके थे, वे एक बार फिर सूर्य की ओर मुड़े। उन्होंने अपने जहाज को बंदरगाह की ओर पहुँचते हुए देखा और जहाज के अगले भाग पर नाविकों एवं अपनी धरती के लोगों को देखा।
और उनकी आत्मा उन पर चिल्ला पड़ी फिर उन्होंने कहा- मेरी बूढ़ी माँ के बच्चे, लहरों पर लहरानेवाले, मेरे सपनों में आप कितनी बार आए हैं? लेकिन अब मेरी जागती अवस्था में आप मेरे पास आए हैं, जो कि मेरा गहरा स्वप्न है।"
जाने के लिए तो मैं तैयार था ही और मेरी समुद्र भ्रमण की तत्परता को बस वायु का इंतजार था।
इस शांत वायु में मैं बस एक और साँस लूँगा, और एक और प्यार भरी नजर पीछे पड़ती है।
और मैं फिर आप लोगों के बीच ही खड़ा हो जाऊँगा, नाविकों में नाविका
और तुम विशाल समुद्र, सोती हुई माँ, जो अकेले ही नदी और झरने के लिए शांति और स्वतंत्रता है.
और तभी यह झरना एक घुमावदार इच्छा प्रकट करता है, इस घाटी में एक और बुदबुदाहट होती है।
और तब मैं आपके पास आऊँगा, अनंत सागर में एक अनंत बूँद की तरह। और जैसे ही वे आगे बढ़ते हैं, तो वे दूर से देखते हैं कि पुरुष और महिलाएँ खेतों और अंगूर के बागानों से निकल रहे हैं और तेजी से शहर के दरवाजे की तरफ जा रहे हैं।
और उन्होंने उन लोगों को अपना नाम लेते तथा एक खेत से दूसरे खेत में जाकर एक-दूसरे को उसके जहाज के आने के बारे में बताते हुए सुना।
और उन्होंने स्वयं से कहा-
"क्या अलग होने का दिन ही जमा होने का दिन होगा?"
और क्या यह कहा जाएगा कि मेरी संध्या सच में मेरा सवेरा था? और मैं उन्हें क्या दूँगा, जिन्होंने अपने हल बीच मेंढ़ में छोड़ दिए हैं या जि-
न्होंने अपने वाहन कोल्हू के पहिए को रोक दिया है?
क्या मेरा हृदय फलों से लदा हुआ एक भारी पेड़ बन जाएगा, जिनके फलों को हो सकता है कि मैं इकट्ठा करके उन्हें दूँ? क्या मैं एक दीया हूँ, जिसे हो सकता है कि ईश्वर के हाथ स्पर्श करें या एक बाँसुरी, जिससे होकर उनकी साँसें मुझ तक पहुँच पाएँ? खामोशियों का अन्वेषक मैं हूँ और खामोशियों में मुझे क्या खजाना मिला, जिसे मैं पूरे भरोसे के साथ बाँट सकता हूँ? यदि यही मेरे फल-प्राप्ति का दिन है, मैंने किस खेत में बीज बोए थे और वह भी किस आज्ञात मौसम में? यदि वास्तव में यही वह समय है, जब मैंने अपना चिराग उठाया, यह मेरी लौ नहीं है, जो उसके भीतर जलेगी।
सन्नाटा और अंधेरा है, क्या मैं अपना चिराग ऊपर उठाऊँ?
और रात का प्रहरी उसमें तेल भरेगा और वही इसे जलाएगा भी—
इन तथ्यों को उन्होंने शब्दों में बयान किया, लेकिन बहुत ज्यादा उनके दिल में अनकहा ही रह गया; क्योंकि वे स्वयं भी अपने गहरे रहस्यों
के बारे में बता नहीं पाए।
और जब वे शहर में दाखिल हुए तो सभी लोग उनसे मिलने आए और वे सभी एक ही आवाज में उनके सामने रो रहे थे। और शहर के बुजुर्ग खड़े हो गए और कहा-
'अब हमें छोड़कर मत जाइए।
हमारी गोधूलि में आप मध्याह्न है और आपके यौवन ने ही हमें सपने देखने के लिए सपने दिए।
आप हमारे लिए न कोई अतिथि हैं और न ही कोई अजनबी, बल्कि आप तो हमारे बेटे और हमारे परमप्रिय हैं। अब हमारी आँखों को आपको न देखने की तड़प न देना।'
यादगार है।
पुजारियों और पुजारिनों ने उनसे कहा—- समुद्र की लहरों को अब हमसे जुदा न होने देना और हमारे बीच आपके बीते समय हमारे लिए