यह पुस्तक खलील जिब्रान की उत्कृष्ट रचना है और हमारे समय की प्रिय रचनाओं में से एक बन गई है। सन् 1923 में प्रकाशित इस रचना का बीस से अधिक भाषाओं में अनुवाद किया गया है और मात्र अमेरिकी संस्करण की ही नब्बे लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी है। जिब्रान ने 'द प्रोफेट' को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि माना। उन्होंने कहा, "माउंट लेबनान में मैंने जब पहली बार इस पुस्तक की अवधा
रणा तैयार की, तब से मैं कभी 'द प्रोफेट' के बिना नहीं रहा। ऐसा लगता है, जैसे यह मेरा एक हिस्सा रहा है। अपने प्रकाशक को सौंपने से पहले मैंने चार साल तक इसकी पांडुलिपि को अपने पास रखा, क्योंकि मैं संतुष्ट होना चाहता था, पूरी तरह संतुष्ट होना चाहता था कि इसका एक-एक शब्द इतना सटीक हो, जितना मैं लिखना चाहता था।"
'द प्रोफेट' को लेकर 'शिकागो पोस्ट' ने कहा- "भावनाओं के साथ तालबद्ध और जीवंत, खलील जिब्रान के शब्द आपके कानों में सभोप-
देशक की राजसी लय को घोल देता है। यदि कोई पुरुष या स्त्री इस पुस्तक को किसी महान् व्यक्ति के दर्शन को मौन सहमति के बिना और हृदय में इस प्रकार गीत गाते हुए स्वीकार नहीं करता, जैसे कि संगीत उसके भीतर जनमा हो, तो वह पुरुष या स्त्री निश्चित रूप से जीवन एवं सत्य के प्रति मृत हो चुका है।"
“मैं जो कहता हूँ, उसके आधे का कोई अर्थ नहीं होता,
लेकिन मैं कहता हूँ, ताकि बाकी का आधा तुम तक पहुँच जाए।"
- खलील जिब्रान (द प्रोफेट)