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खाक में मिल गई सब ताकत -औ -दौलत तेरी ।
गैर भी करते हैं उफ देख कर जिल्लत तेरी ॥
देख कर ये तुझे आता है ठुकराता है ।
तेरी उस शानेगुजिस्ताँ का ख़याल आता है ॥
प्यार ही प्यार में मिट्टी में मिला जाता है ।
सब समझता है दिल मगर होश नहीं आता है ॥
जिसने ताईद न कि कौन सा आईन न था ।
मेरे जाइज भी हकूको की कि है खुलकर हत्या ॥
उफ कैसी है ज़िंदगी की पहेली की है मेरी मजम्मत सबने ।
अब आदमी दूर लगे शम्श-औ-कमर लगने लगे हैं अपने ॥
जिल्लत - दुर्दशा
शानेगुजिस्ताँ - वैभव
ताईद - प्रंशसा
आईन - विद्वान ग्रन्थ
हकूकों - अधिकारों
मजम्मत - निन्दा
शम्श - सूरज
कमर - चंद्रमा
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