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झरोखा

23 सितम्बर 2015

293 बार देखा गया 293
featured imageयूँ न था मैं गुमसुम पहले, जब तुम मिले बरसात की साँझ, सीखा तुमसे मुस्कुराना गम में भी, तुम्हारी यादें कुछ अनकही सी है, मिलते थे तुम तो जब तो मन मंद मुस्कुराता था , और गीत प्रीत के गाता था , अब साथ मेरे केवल तुम्हारी यादों का झरोखा ही शेष है।
अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

सुन्दर रचना के लइये बधाई !

23 सितम्बर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

सीखा तुमसे मुस्कुराना गम में भी.........सुन्दर भावाभिव्यक्ति !

23 सितम्बर 2015

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प्यारे शिक्षक

5 सितम्बर 2015
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अनुपम कृति ईश्वर की हमारे लिये ,कड़क की बोली लेकिन प्रेम की छाह,तल्लीनता आपकी हमारे अध्यापन में,परेशानियों को हल करने की चाबी,सुखद है तेरी छाया पाकर हम,नमन है तुमको हे! गुरुदेव।

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यादें

16 सितम्बर 2015
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गुमसुम सी तुम थी,एक शाम यूँ ही तुम्हे देखा बारिश की बूँदों से,तुम भींगी जा रही थी।था तुम्हे दूर जाना अपने निकेतन को,यह देख कवि का दिल हुआ विभोर और करने लगा शोर,खा जाके हे सखी! ये लो रेनकोट धारण करो इसे,था रेनकोट बढ़ा,सखी को रेनकोट पहनना याद है।

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यादें

16 सितम्बर 2015
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गुमसुम सी तुम थी,एक शाम यूँ ही तुम्हे देखा बारिश की बूँदों से,तुम भींगी जा रही थी।था तुम्हे दूर जाना अपने निकेतन को,यह देख कवि का दिल हुआ विभोर और करने लगा शोर,खा जाके हे सखी! ये लो रेनकोट धारण करो इसे,था रेनकोट बढ़ा,सखी को रेनकोट पहनना याद है।

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झरोखा

23 सितम्बर 2015
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यूँ न था मैं गुमसुम पहले, जब तुम मिले बरसात की साँझ,सीखा तुमसे मुस्कुराना गम में भी, तुम्हारी यादें कुछ अनकही सी है,मिलते थे तुम तो जब तो मन मंद मुस्कुराता था ,और गीत प्रीत के गाता था ,अब साथ मेरे केवल तुम्हारी यादों का झरोखा ही शेष है।

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