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जिंदगी है कहाँ ???

8 जून 2016

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मै हु तन्हा, 

      मेरी जिंदगी है कहाँ । 

      ये दर्पण बता चेहरा कहाँ 

मै हु तन्हा, 

      मेरी जिंदगी है कहाँ । 

हैं फासले क्यों मिटते नहीं, 

ये रास्ते क्यों कटते नहीं । 

सर्गोशी ईन आखों में छाई अंधेरा, 

हैं मेरी बचपन कहाँ, मेरी ज़िदगी कहाँ 

 

" शायरी "

आज मैने जिन्दगी कई नाम दिया हैं । 

तू ढूंढ कर लादे उसका पता, 

ईन हवाओं से बादलों को पैगाम दिया हैं । 

                         " 

ये हवा तू आती-जाती कहाँ

बादलों से पूछो उसका पता 

मै हु तन्हा, 

       मेरी जिंदगी है कहाँ । 

       गर्म पवन मेरा छूता बदन 

हैं मंजिल मेरा फिर क्यों मिलाता नहीं 

       हैं इन आखों से सागर बरा 

       हूँ बेजान सा अकेला खरा 

डूब जाउ मै कैसे तू उसका चेहरा बता 

मै हु तन्हा, 

      मेरी जिंदगी है कहाँ । 

      ये दर्पण बता उसका चेहरा कहाँ । 

लेखक:- 

         राजीव रंजन सिहं "राजपूत" 

                 08/06/2016

                    09:45 pm


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11 अक्टूबर 2016
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