जीवन से सिख्ख जीना
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तड़पते दरिया पर लिख्ख
तड़पते जीवन पर लिख्ख
जो गुजर गया उसे भूल
अभी वक्त है उमंग का
जीवन जीने को सिख्ख
जिन्हें तू वक्त दिया ओ क्या तुम्हें समझे ?
तू अपने लिए दे वक्त
तू जिंदा है बड़ी बात है
तेरे अपने जज्बात हैं
आलोचनाएं तो होती रहती है
चिता में लेटे हुए का कौन आलोचना करता है
जिनकी मर गई है जज्बात उनकी फ़िकर क्यों
जो गलत हैं उन्हें गलत कहने का हक नहीं है ?
ये जो मन से बलात्कारी हैं
ये जो नारी वर्ग के हैं दुश्मन
उन्हें कैसे कब सजा होगी
कब होगी इनकी सुनवाई
कब होगा इनका इलाज
क्या ये समाज के लिए दुश्मन हैं
जिंदगी से ले सिख्ख
जिंदगी सच है
जीवन ब्यस्त है
नदी अभ्यस्त है
खून का रंग लाल है
स्नेह ,ममता , दुलार जीवन का सिख्ख है
आजादी का मतलब सम्मान है
जीवन का मतलब उल्लास है
जीवन से सिख्ख जीना
लक्ष्मी नारायण लहरे 'साहिल'