कविता
अपने घर लौटते पक्षी
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सांझ ढलते सूरज डूबा
अंधेरी लगने लगी आसमा
काम कर किसान अपने घर को लौटे
पेड़ -पौधे पर पक्षी बैठे
सांझ हुई प्रकृति शांत पड़ी
अपने घर को लौटते पक्षी
तालाब किनारे वह बैठा राही
पक्षियों की कलरव का है शोर
गांव चुप है ,आसमा चुप है
बस पक्षियों की कलरव मन को भाव विभोर कर रही है
मन्दिर बन्द है ,गली कुछ लोगों सिमट गई है
गांव की चौपाल पर अब कोई नहीं बैठता
पड़ोसी के घर आना - जाना बंद है
यही जीवन है यही सच्चाई है
संघर्षों से लोग अब पीछे हटने लगे हैं
न कोई किसी को अब चिट्ठी लिखता है
न अब कोई किसी से प्रेम करता है
बस अगर कुछ नहीं बदला है
तो वह पक्षी की कलरव ही है
लक्ष्मी नारायण लहरे
07 नवम्बर 2021