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अस्त- ब्यस्त ज़िंदगी

6 नवम्बर 2021

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कविता 
अस्त -ब्यस्त ज़िंदगी
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भावनाएं हृदय की किसी कोने में ठहर सी गई थी 
जज्बातें उभर कर आंखों से बोल पड़ती थी 
अस्त -ब्यस्त ज़िंदगी में,कभी कभी अहसास होता था 
बचपन में बस्ता उठाकर स्कूल चल पड़ता था 
कहीं सुस्ताने का,रुकने का, छांव में बैठने का समय नहीं मिलता था
बस मास्टर की बातों को सुनना समझना एक काम था 
स्कूल से घर ,घर से स्कूल 
कितना सुखद उमंग उत्साह से भरा वह समय था 
कितना प्यार करते थे माँ -बाप 
बचपन के साथ उमंग उत्साह अब  खत्म हुए 
अस्त -ब्यस्त ज़िंदगी में 
अब जीना सीख गया हूँ 
अब खुद से ख्याल अपना रखना पड़ता है 
ये ज़िंदगी है ये सबब आँगन से लेता हूँ 
अपनों के साथ भी ,गैरों के साथ भी  
बहुत कठीन होता है यह जीवन 
अस्त-ब्यस्त ज़िंदगी से सरल ज़िंदगी 
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लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल"
गांव /डाक घर -कोसीर 
उप-तहसील -कोसीर 
जिला -रायगढ (छत्तीसगढ़ )
मो0 9752319395
मेल -,shahil.goldy@gmail.com

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Shailesh singh

Shailesh singh

बहुत ही भावुकता के साथ बुनी गयी रचना सर 🙏😊

12 नवम्बर 2021

ममता

ममता

बहुत सुन्दर सृजन

6 नवम्बर 2021

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