मैंने अपने छोटे से जीवनकाल में विचारों की प्रखरता, अनुभवों की गठरी और ज्ञान के विविध आयाम अपने पिता से विरासत में पाये हैं। आज उनके आकाशीय आशीर्वाद के फलस्वरूप शुभ दिन सम्भव हुआ है कि काव्यदीप की साहित्यिक यात्रा में एक मील का पत्थर रखा जा रहा है। 'काव्यदीप - प्रथम दीप' समर्पित संग्रह प्रेरणास्त्रोत मेरे परम पूजनीय पिता जी श्री वीरेंद्र कुमार सक्सेना जी को समर्पित है। अपने यशस्वी जीवन काल में अपने पराए कई घर-परिवारों में आशा और अर्थ के दीप जलाने वाले मेरे पिताजी ने काव्यदीप का दीप प्रज्ज्वलित किया; जिसे मैं अक्षुण्ण बनाने के ध्येय से यह संकलन ले कर आई हूँ। सत्य पथ अनुगामी, निष्काम भाव से परोपकार करने वाले मेरे पिता की प्रेरणा से काव्यदीप का संपादन कर मैं अति हर्ष की अनुभूति कर रही हूँ। उनका लोकहितार्थ लगनशील व्यक्तित्व मुझे सदैव काव्यदीप के माध्यम से निस्वार्थ साहित्य साधना की ओंर प्रेरित करता है। भाषा और साहित्य की सेवा ही मेरा परम उद्देश्य है।
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