कैसा लगता है ?
जब दिन गुजरे गिनाते घड़ीयां - पल ,
जब हो किसीका अंतहीन इंतज़ार ,
ना वह आये और ना दे कोई सुराग !
तब कैसा लगता है ?
जब लगने लगा आज आनेवाला है वह शुभ दिन,
और वह ले आये मायूसी का पैगाम ,
तरस रहे सुनने को हाँ पर सुनना पड़े नकार !
तब कैसा लगता है ?
जब इन्तजार के दिन लगे जैसे महीने साल !
अब तो बस बहुत हुआ ना तड़पाओ सरकार !
मन अधीर जियरा है बेकरार !
तब कैसा लगता है ?
ऐसा क्या जुर्म किया हमने की ना सुनी कोई फ़रियाद,
माँगते माफ़ी बैठ घुटनों पर ,चरण छूकर बारम्बार !
तब कैसा लगता है ?
अब तो डिस्चार्ज कर दो हमें डॉ जी ,
रखेंगे सेहत का ख्याल ,
फिर ना मिलना पड़े हॉस्पिटल में ,
ना आएं मित्र और रिश्तेदार ,
करें प्रार्थना यही प्रभु से स्वस्थ रहे संसार !
स्वस्थ रहे संसार !!!
*****