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कैसा लगता है ?

1 दिसम्बर 2016

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कैसा लगता है ?

जब दिन गुजरे गिनाते घड़ीयां - पल ,

जब हो किसीका अंतहीन इंतज़ार ,

ना वह आये और ना दे कोई सुराग !

तब कैसा लगता है ?


जब लगने लगा आज आनेवाला है वह शुभ दिन,

और वह ले आये मायूसी का पैगाम ,

तरस रहे सुनने को हाँ पर सुनना पड़े नकार !

तब कैसा लगता है ?

जब इन्तजार के दिन लगे जैसे महीने साल !

अब तो बस बहुत हुआ ना तड़पाओ सरकार !

मन अधीर जियरा है बेकरार !

तब कैसा लगता है ?

ऐसा क्या जुर्म किया हमने की ना सुनी कोई फ़रियाद,

माँगते माफ़ी बैठ घुटनों पर ,चरण छूकर बारम्बार !

तब कैसा लगता है ?


अब तो डिस्चार्ज कर दो हमें डॉ जी ,

रखेंगे सेहत का ख्याल ,

फिर ना मिलना पड़े हॉस्पिटल में ,

ना आएं मित्र और रिश्तेदार ,

करें प्रार्थना यही प्रभु से स्वस्थ रहे संसार !

स्वस्थ रहे संसार !!!


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