कभी ऑनलाइन तो, कभी ऑफलाइन शिक्षा का आजकल बच्चे चख रहें हैं स्वाद, हम ही थे बस ऐसे जो , रोज़ स्कूल जा जाकर हुए थे बेहाल दोस्तों के संग बैठ के पढ़ना एक दूसरे के साथ मिलकर खेलना और शे
मुश्किल है अपना मेल प्रिये यह प्यार नही है खेल प्रिये तुम एक पागल बंदरिया सी मैं हु जंगल का शेर प्रिये तुम कड़वी नीम की पत्ती सी मैं हु मीठा से बेर प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये यह प्यार नही है खेल प्रिये तुम हवा हवाई चप्पल सी मैं हु रिबॉक का सूज प्रिये मैं तला पकौडा बेसन का तू सड़ा हुवा बचा तेल
कैसा लगता है ? जब दिन गुजरे गिनाते घड़ीयां - पल ,जब हो किसीका अंतहीन इंतज़ार ,ना वह आये और ना दे कोई सुराग ! तब कैसा लगता है ?जब लगने लगा आज आनेवाला है वह शुभ दिन,और वह ले आये मायूसी का पैगाम ,तरस रहे सुनने को हाँ पर सुनना पड़े नकार ! तब क
@@@@@ अनूठा हवाई अड्डा @@@@@--------------------------------------------------एक सुनहरे सफ़र की , मैं बता रहा हूँ यह बात |ट्रेन के उस सफ़र में ,एक सुन्दरी थी मेरे साथ ||सुन्दरी ने पहन रखा था,हवाई जहाजी लॉकेट |और सामने की सीट पर , बैठा था युवक एक ||मेरी नजर तो उस प्लेन पे , सिर्फ एक बार थी पड़ी |पर दृष