संकल्प राष्ट्रनिर्माण
मैं असत्य के आगे,
हरगिज़ नहीं झुकूंगा।
मैं नेताओं की करतूतें,
जन जन की पीर लिखूंगा।
अंधा करके चश्मा देते,
चश्मा दे करते अंधा।
राजनीति को देशसेवा नहीं,
बना लिया है धंधा।
आए थे जो चोर भगाने,
वो खुद चोर भयंकर हैं।
उल्टा सीधा सीधा उल्टा,
करते न्यूज़ के एंकर हैं।
डरी हुई कलमों के मालिक,
मुझे सिखाते हैं लिखना।
लिखना सीखा और सीखूंगा,
मैं नहीं सिखूंगा बिकना।
नफरत की झाडियाँ सूखेंगी,
मोहब्बत फूल लहराएंगे।
होठों पे भारत माँ की जय होगी,
शान से ध्वज तिरंगा फहराएंगे।
मैं हूँ विशाल तुम भी विशाल,
दुश्मन के काल नफरत के काल।
मेरा देश रहे सदा खुशहाल,
यही चाहते भारत माँ के लाल।
रचनाकार-: कवि विशाल श्रीवास्तव