ख़ाली पन बहुत अखरता है
जीवन की गोधूलि बेला में,
सबकुछ पीछे छूट गया है
जीवन की इस मेला में,
इतना खाली कुछ भी न होता
जितना खाली होता एक भरा हुआ मन ,
अंदर तक सन्नाटा पसरा
न है कोई कदमों की आहट ,
इंतज़ार करता मन किसका
कौन है जो छोड़े मन पर छाप,
कौन भरे इस खालीपन को
चीर हृदय की गहराई को ,
अंदर मन के घाव भरे
भर जाते मन का सूनापन ,
ठहरी आंखों की प्यास बुझने
ऐसे कदमों की आहट को ,
तरह गया ये प्यासा मन
कौन कहता है कि दर्द,
सिर्फ दवा से ही जाता है
लगा दे कोई मरहम अपने पन का
तो भी सुकून आ जाता है ।
मंजू ओमर
झांसी
रचना र्पूणतया मौलिक और स्वरचित है