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खेलों में शिक्षण के साथ प्रशिक्षण का महत्त्व

18 अगस्त 2015

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featured imageव्यक्ति को अपने जीवन में पग-पग पर शिक्षण और प्रशिक्षण की आवश्यकता पड़ती है I प्रशिक्षण ही वह चाक है, जिस पर कुशल कुम्हार के हाथों मिटटी का साधारण सा लोंदा खूबसूरत कुल्हड़, घड़ा या जगत को प्रकाश देने वाला दीपक बन जाता है I यूं तो कुछ प्रतिभाएं जन्मजात होती हैं, पर प्रशिक्षण पाकर ही वे अपनी अधिकतम क्षमता का प्रदर्शन कर पाती हैं ! प्राचीनकाल से शिक्षण के लिए सभी सभ्य समाजों में गुरुओं के पास जाने की प्रथा रही है I भारत में इसे ही गुरुकुल प्रणाली कहा गया है I यूं तो व्यक्ति जीवन भर कुछ न कुछ सीखता है, पर जीवन के पहले २५ वर्ष को ब्रह्मचर्य आश्रम का नाम देकर उसे पूरी तरह शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए ही समर्पित किया गया है I भगवान राम से लेकर कृष्ण तक और दयानंद से लेकर विवेकानंद तक सभी अवतारों और महापुरुषों ने गुरु के चरणों में बैठकर जो सीखा, वह आज भारत की ही नहीं वरन सम्पूर्ण विश्व की अमूल्य धरोहर है I यदि वर्तमान समय में प्रशिक्षण के चमत्कार की चर्चा करनी हो तो प्रख्यात निशानेबाज़ जसपाल राणा का उदहारण सर्वश्रेष्ठ है I उसके पिता नारायण सिंह एक श्रेष्ठ निशानेबाज़ हैं I इन दिनों वे उत्तराखंड की राजनीति में सक्रिय हैं पर 80 के दशक में वे प्रधानमंत्री राजीवगांधी के सुरक्षाकर्मियों को निशानेबाजी का प्रशिक्षण देते थे I एक बार राजीव गाँधी ने उनसे कहा कि वे उनके पुत्र राहुल को भी निशानेबाजी सिखा दें I नारायण सिंह राहुल के साथ ही हमउम्र अपने पुत्र जसपाल को भी निशानेबाजी सिखाने लगे, जसपाल ने गति पकड़ ली I आज जसपाल राणा अंतर्राष्ट्रीय स्तर के निशानेबाज़ हैं I इसके बाद नारायण सिंह ने अपने दूसरे पुत्र सुभाष और बेटी सुषमा को निशानेबाज़ी सिखाई I अब वे दोनों भी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं I केवल बच्चों को ही नहीं, नारायण सिंह ने अपनी पुत्री व वुत्रवधू को भी प्रशिक्षण दिया I आज सास-बहू दोनों राष्ट्रीय स्तर की निशानेबाज़ हैं I स्पष्ट है कि जीवन में प्रशिक्षण तथा अच्छे प्रशिक्षक का बहुत महत्व है I पश्चिमी उ0प्र0 बागपत ज़िले के ग्राम जोहडी के डॉ. राजपाल सिंह स्वयं विख्यात अंतर्राष्ट्रीय निशानेबाज़ रहे हैं I उन्होंने १९९८ में जोहडी स्कूल ऑफ़ शूटिंग स्थापित कर फायरिंग रेंज बनाई तथा बच्चों को प्रशिक्षण देना शुरू किया I आज वहां के लड़के-लड़कियां ही नहीं बल्कि 40-45 साल की महिलाएं भी अपनी ग्रामीण वेशभूषा में राष्ट्रीय स्तर की निशानेबाजी की प्रतियोगिताएं में भाग लेकर पदक जीत रही हैं I इसी प्रकार पूर्वी उ0प्र0 का एक गाँव ‘हॉकी गाँव’ के नाम से प्रसिद्द है I वहां के निवासी एक पूर्व राष्ट्रीय खिलाड़ी ने अपने गाँव में स्वयं ही अच्छा प्रशिक्षण देकर नए खिलाडियों की फ़ौज तैयार कर दी है I वहां के खिलाड़ी अब प्रादेशिक और राष्ट्रीय टीम में स्थान बनाने लगे हैं I ग्राम संसारपुर (जालंधर, पंजाब) को हॉकी का स्वर्ग माना जाता है I वर्ष १९३२ से १९८० के बीच यहाँ से १४ अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी निकले I २००६ के दोहा एशियाड में भारत की महिला हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीता I इसमें छ: लड़कियां एक ही गाँव शाहबाद मरकंडा (अम्बाला, हरियाणा) की थीं I इन्हें प्रशिक्षक बलदेव सिंह ने तैयार किया I ये सभी यहीं के गुरु नानक प्रीतम सीनिअर सेकेंड्री स्कूल की छात्राएं थीं I बलदेव सिंह ने 10 वर्ष से कम आयु की 20 छात्राओं को प्रशिक्षण प्रदान किया, उनमें से ही चयनित इन लड़कियों को ‘सुपर सिक्स’ कहा जाता है I बलजिंदर कॉलेज, फरीदकोट के कर्मचारी नत्थूराम सैनी ने अपनी चारो बेटियों को खेल का प्रशिक्षण दिया I वे सब अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी बनीं I इनमें से बड़ी बेटी प्रेमा सैनी ने 1967-72 में महिला हॉकी में भारत का प्रतिनिधित्व किया तथा वर्ष 1970-71 में वह कप्तान बनीं I केंद्र नें उन्हें अर्जुन पुरस्कार तथा पंजाब शासन ने महाराजा रंजीत सिंह पुरस्कार से सम्मानित किया है I इन दिनों वह राजकीय विद्यालय, मोहाली में कार्यरत हैं I दूसरी बेटी कृष्णा सैनी छः साल तक भरात की सर्वश्रेष्ठ महिला एथलीट रहीं I अनेक बार 800 मीटर एवं बाधा दौड़ में भारत का प्रतिनिधित्व किया I इन दिनों अह भी शासकीय विद्यालय में कार्यरत हैं I जी.एच.जी. कॉलेज में अध्यापिका, तीसरी बेटी स्वर्ण सैनी 1971 से 75 तक भारतीय महिला हॉकी टीम में रहीं I चौथी बेटी रूपा सैनी 1970 से 81 तक हॉकी टीम में रहीं I उन्होंने तीन विश्व कप, दो विश्व चैंपियनशिप और मोस्को ओलम्पिक में भाग लिया I तीन साल तक वह टीम की कप्तान भी रहीं I वह 15 वर्ष की अवस्था में ही हॉकी टीम में शामिल हो गई थीं तथा 20वें साल में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया I पंजाब शासन ने किला रायपुर, लुधियाना में हुए 2007 के ग्रामीण खेलों को नत्थूराम को समर्पित किया I यहाँ के ये ग्रामीण खेल, ‘मिनी ओलम्पिक’ कहे जाते हैं I स्पष्ट है कि खेल हों या कोई एनी कला, प्रशिक्षण से उसमें निखार आता है I विद्यार्थियों के अवकाश के दिनों के समय का सदुपयोग शिक्षा से इतर अपनी रूचि के किसी एनी काम में किया जाए, तो वह सम्पूर्ण जीवन के लिए एक धरोहर बन जाएगी I आगे चलकर इससे पैसा और प्रसिद्धि भी मिल सकती है I यदि यह न भी मिले, तो भी जीवन में एक उपलब्धि तो होगी ही, जिसके बल पर हम स्वयं को दूसरों से एक क़दम आगे खड़ा अवश्य अनुभव करेंगे I —डॉ. मृदुला अवस्थी असिस्टेंट प्रोफ़ेसर (शा0शि0) डी0एस0एन0 कॉलेज, उन्नाव (उ0प्र0)
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