दिन भर सूरज से बाते करता ,
खुद भूखा रहता हे फिर भी कर्मरत -
हे वह निरंतर
दिन भर तपता ,सूरज की गर्मी में देखता -
क्या दम सूरज में की दे दे वो शाम को
दो दाने वो ान के
भर दे शायद वो पेट उनका भी जो -
बैठे हे एकटक बाट ज़ोह किसी अपने की
(ये ऐसी केसी हालत हे ,
अपने अन्नादाता की
और हम क्यों नहीं कुछ करते,
बददलने हालत अपने ही भगवान की )
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( जब होगा ही न अन्न
तो फिर क्या होगी हालत,चाहे हो
तन या की )