30 नवम्बर 2018
दिन भर सूरज से बाते करता , खुद भूखा रहता हे फिर भी कर्मरत - हे वह निरंतर दिन भर तपता ,सूरज की गर्मी में देखता - क्या दम सूरज में की दे दे वो शाम को दो दाने वो ान के भर दे शायद वो पेट उनका भी जो - बैठे हे एकटक बाट ज़ोह किसी अपने की (ये ऐसी केसी ह