हम क्यो बीमार पड़ते है ! राजीव भाई हम सब जानते हैं कि हमारा शरीर वात-पित्त-कफ (त्रिदोषों) के संतुलन से ही स्वस्थ रहता है। अगर किसी कारण से वात-पित्त-कफ का यह संतुलन बिगड़ता है तो हम बीमार पड़ते हैं और मृत्यु का कारण भी बनता है। अगर हम अपने शरीर पर ध्यान दें तो यह बिगड़ा हुआ संतुलन सुधारा जा सकता है। मौसम में परिवर्तन होने से भी हम बीमार पड़ते हैं सर्दी, बरसात, गर्मी के परिवर्तन से मौसम सम्बन्धी बीमारियाँ होती हैं जिन्हें हम जरा सी सावधानी से ठीक कर सकते हैं । अनियमित खान-पान, बेमेल खान-पान से भी हम बीमार पड़ते हैं बाजारु, सड़ी-गली चीजें खाने से, विपरीत आहार करने से, या अपनी प्रकृति के विरुद्ध आहार करने से भी हम बीमार पड़ते हैं, जैसे यदि हमारी प्रकृति पित्त प्रधान है तो हम अनजाने में पित्त बढ़ाने वाला भोजन करते हैं तथा बीमारी को और बढ़ावा देते हैं। अपनी प्रकृति को जानकर भोजन ग्रहण करें तो स्वस्थ रह सकते हैं। वात,पित्त और काफ अनियमित दिनचर्या जैसे देर रात तक जागना या देर तक सोना, अनावश्यक तनाव के कारण भी कर्इ सारी बीमारियाँ होती हैं। योग प्राणायाम, आसन आदि द्वारा हम स्वस्थ रह सकते हैं । बीमार होने का एक दूसरा बड़ा कारण यह भी है कि हम आज अनाज, फल, सब्जी आदि के रुप में जो भी खा रहे हैं वह सब रासायनिक खाद और कीटनाशकों के सहयोग से उत्पन्न किये जाते हैं। इसलिए वह खतरनाक रासायनिक तत्व अनाजों के द्वारा हमारे शरीर में आते हैं और अलग-अलग तरह की बीमारियों को जन्म देते हैं। दूध, घी, तेल, मसाले, दवाईयों में भी भारी मिलावट रहती है। पानी बीमारियाँ दो प्रकार की होती हैं एक तो वे जिनकी उत्पत्त्ति जीवाणुओं, वायरस या फंगस से होती हैं जैसे टी.बी. टायफाइड, टिटनेस, मलेरिया, निमोनिया आदि, ये बीमारियाँ जल्दी ठीक हो जाती हैं और इनकी दवायें भी विकसित हो गयी हैं। दूसरे प्रकार की बीमारियाँ शरीर में बिना जीवाणुओं के होती हैं और धीरे-धीरे असाध्य बन जाती हैं, चूंकि इनके कारण का पता नहीं होता इसलिये इनकी दवायें पूरी तरह से विकसित नहीं हो पायी हैं जैसे एसिडिटी, दमा, उच्च रक्तचाप, गठिया, कर्क रोग, मधुमेह, प्रोस्टेट आदि। इन असाध्य बीमारियों को ठीक करने के लिए ही स्वदेशी चिकित्सा के प्रयोग किये जा रहे हैं।