पृथ्वी सूर्य कि परिक्रमा एक निश्चित अवधि में करती है और एक निर्धारित कक्ष में ही करती है । पृथ्वी का कक्ष एक दीर्घवृत्त (ellipse) जबकि सूर्य उसके एक केंद्र पर होता है । जब पृथ्वी सूर्य के अधिक पास होती है तो यहाँ ग्रीष्म ऋतु होती है और जब दूर तो शरद ऋतु । अब जब ऋतुओं में बदलाव होता यानि सूर्य के दूरी के कारण धरती पर ग्रीष्म से शरद ऋतु परिवर्तित होती है और इसके ठीक छह माह उपरान्त एक नवरात्र और होते हैं तब आजकल का नवरात्र है ।
दोनों समय मे ऋतु परिवर्तन के कारण हमारी शारीरिक (भोजन) की आवश्यकताएं बदलती हैं । उदाहरण के लिए सर्दी के हमें उस पदार्थ का सेवन करना चाहिए जिसकी तासीर गरम हो अर्थात काजू, बादाम अखरोट इत्यादि । उसी प्रकार ग्रीष्म ऋतु मे हम उस पदार्थ का सेवन करते हैं जो ठंडक पहुंचाता हो, जैसे ठंडाई, खसखस, खीरा इत्यादि। प्रकृति माता ने हमें वास्तव में इसका ज्ञान दिया है और इसी कारण ग्रीष्म ऋतु के फलों में खरबूजा और तरबूज का फल पकता है।
दुर्भाग्य से हम हर मौसम में cold storage में रखा बेमौसमी भोजन करके अपने आपको शायद स्मार्ट या बुद्धिशाली समझते हैं और फिर इसी लिए बीमार होते हैं ।
अब आइये इसे नवरात्र से समझें जब ऋतु बदलती है तो नए अन्न को शरीर को देने से पहले हम शरीर को खाली कर लेते हैं जैसे एक बर्तन में नये प्रकार के भोजन से पहले बर्तन साफ कर लिया जाता है । तो परम्परा के अनुसार व्रत रखा जाता है जिसमे मात्र सुपाच्य भोजन किया जाता है जैसे फल या मात्र उबले हुए आलू इत्यादि । अब कालांतर मे इसमे कुट्टू जो कि अन्न नहीं माना जाता उसकी पूरी और भी गरिष्ठ पदार्थ खाये जाने लगे तो इससे शायद धार्मिक रूप से आपको संतुष्टि मिले परन्तु शारीरिक रूप से पाचन तंत्र पर अधिक दबाव पड़ने के कारण शारीरिक शुद्धि नहीं हो पाती।
परमपारिक रूप से इस समय की मृत्यु अशुभ मानी जाती थी और इसी लिए भीष्म पितामह जिनहे इच्छा मृत्यु का वरदान था उन्होने शर शैय्या पर समय काटा था और उस समय प्राण त्यागे थे जब ऋतु शरद से ग्रीष्म मे बदली थी यानि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा।
उपवास का लाभ समझने के लिए हमें शरीर के भोजन तंत्र को समझने पड़ेगा । जब भी हम भोजन करते हैं शरीर उसे पचा कर ऊर्जा मे परिवर्तित कर देता है और विष को निष्कासित करता है । हमार भोजन, विशेषकर आज का भोजन जो प्राकृतिक नहीं रहा इसमे परिष्कृत भोजन की मात्रा बढ़ती जा रही है हमारे पाचन तंत्र पर अधिक दबाव डालता है । शरीर अपना कार्य करते हुए भी इसकी शुद्धि पूर्ण रूप से नहीं कर पता और धीरे धीरे हमारे शरीर में विषाणु अपना घर कर लेते हैं यही विषाणु अधिकांश बीमारियों या रोगों के जन्म दाता हैं । जब आप उपवास करते हैं तो शरीर के पाचन तन्त्र को विश्राम मिलता है परंतु विश निष्कासान की प्रक्रिया चलती रहती है जिसे शरीर में जमा सारा विष निकाल जाता है । अब जब आप फिर से अन्न ग्रहण करते हैं तो पाचन तन्त्र अधिक क्षमता से काम करता है । अपनी car की हम कुछ समय के बाद service कराते हैं ऐसे ही यह शरीर की service समझिए । घर रोज़ साफ करते हैं पर कुछ समय उपरान्त विशेष सफाई अभियान चलते हैं जिससे कोने कोने का कचरा निकाल दिया जाये । ऐसे ही व्रत या उपवास शरीर के कोने कोने से विषाणु को बाहर निकाल देता है । इसीलिए व्रत का भोजन सुपाच्य होना चाहियी और जब आप फिर से भोजन रोज़मर्रा का शुरू करें तो धीरे धीरे अन्न या गरिष्ठ भोजन लेना शुरू करें । यह दोनों बातों का शायद हम आज विचार नहीं करते हैं और इसीलिए व्रत के पूरे फायदे नहीं हो पाते हैं।
अब आइये इसमे कन्या पूजन का महत्व समझें यह हमारी उसी संस्कृति का अंश है कि हम अपने घर की कन्याओं का पूजन करते हैं उन्हे लक्ष्मी, दुर्गा , कात्यायनी, अम्बा, गौरी इत्यादि का रूप मानते हैं । उत्तर भारत के प्रदेश पंजाब, और उत्तर प्रदेश में इसका अधिक प्रचालन है । इससे यह स्पष्ट है कि हमारे भारत देश में नारी जाती की क्या स्थिति थी और आज भी है । इसमे यौवनारम्भ से पहले की उम्र की कन्याओं का पूजन होता है । यदि यह सत्य है तो कन्या हत्या कैसे होती थी ? यह प्रश्न उन सभी भारतीयों से है जो आज अंग्रेजों के चलाये शिक्षा और संस्कारी जीवन और इतिहास के कारण ऐसा मानते है कि भारत में नारी का जीवन उपेक्षित था ।
अब आइये विवाहित महिलाओं की चर्चा हो जाए क्या वह उपेक्षित थी ? जी नहीं उनके लिए सुहासिनी पूजा थी जो मात्र विवाहित स्त्रियॉं को उनके मंगलमय जीवन के लिए होती थी । वह पूजा भी कन्या पूजा जैसी ही है परन्तु बच्चियों के स्थान पर विवाहित स्त्रियाँ होती थीं । सार मे सभी नारियों के लिए पूजा योग्य स्थान था क्यूंकी घर की वृद्ध माताएँ यह पूजा करती थी । आ गया न पूरे समाज की स्त्रियॉं का समावेश । ऐसी महान है हमारी संस्कृति ।हमारी समस्त परम्परा समाज को जोड़ने और जीवन को ऊंचा बनाने के लिए हैं परन्तु धर्म का पुट डाल कर हम शायद आसानी से समझ और स्वीकार कर लेते हैं ।