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लघुकथा- बिखेरती मुस्कान

1 नवम्बर 2017

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रोशनी?? ,जी मेमसाहब ,मैं बस बर्तन साफ करके आती हूँ ,कुछ काम जो बाकी है जो जल्दी ही खत्म करके ही घर जाऊँगी। "हाँ"और कुछ कपड़े है वो लिए जाना रिया को पसन्द थे सो उसने तुम्हारी बेटी रुचि को देने को बोला है।ये बोलकर भारती अपने बेडरूम में चली गयी। "मेमसाहब" हाँ बोलो फ़ोन में व्यस्त भारती ने ऐसे बेपरवाह होक जबाब दिया।क्या है बोलो कोई बात आज कुछ उदास हो क्या बात है। "मैडम आप तो मेरे पति रमेश को जानती हो।बहुत दारू पीता है।लाख समझाने से भी नही मानता।आज रुचि को बुखार में छोड़कर आयी हूँ।कुछ पैसे मिल जाते तो उसकी दवा ले आती। भारती-कितनी लापरवाह हो तुम!पहले बताती ये सब अरे काम इतना भी जरूरी नही था।आज तो छुट्टी भी थी मेरे ऑफिस में।मैं सब काम कर लेती। और अब घर जाओ बच्ची को संभालो जाके।और ये लो दो हजार रूपये ।और कम पड़े तो मुझे बताना। जी मेमसाहब ये कहके उसकी आंखें भीग गयी। भारती-पागल मत बनो कोई एहसान नहीं कर रही हूँ।तुम भी तो कितनी मेहनत करती हो। आपका ये एहसान कभी नही भूलूंगी मेमसाहब! ये बोलकर रोशनी घर चली गयी अपने। भारती मन ही मन मुस्कुराई कि उसने दीवाली में कितना अच्छा तोफहा दिया रोशनी को।ये सोचकर बाकी काम मे जुट गयी वो। "उपासना पाण्डेय" हरदोई(उत्तर प्रदेश)

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