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दिल की बात

26 अक्टूबर 2017

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दिल मे नही रुकते अब मेरे जज्बात ,तुम रहते हो मेरे दिल के पास ,मुझे फर्क नही पड़ता कि तुम रहते हो मुझसे दूर,बस तुम्हे कोई जब देखता है, तो दिल पता नही क्यों हो जाता है उदास,उसको भी खबर है कि तुम सिर्फ मुझसे मोहब्बत करते हो,मगर न जाने कैसे अजीब सा होता है एहसास,कि कही कोई तुम्हें हमसे अलग न कर दे बड़ी मुश्किलो से मिले हो तुम,हर बार मोहब्बत में खुद को आजमाएं ,ऐसा हम सोचते नही तुम मेरी ज़िंदगी हो और तुम ही मेरी आखरी मोहब्बत हो सुना है कि लोग तुम पर मरते हैं मगर प्यार सिर्फ हम तुमसे करते हैं ये जान भी तुम्हारी होगी ये लड़की और उसकी सांसे भी तुम्हारी,बस कभी भूल जाना तो बता देना हम उस पल खुद ही दूर हो जायेगे,चले जायेंगे इतनी दूर,कि कभी नज़र न आएंगे,फिर तुम भी ढूढंने कि कोशिश न करना,बस रखना दिल पर हाथ अपने और धड़कनों में महसूस करना।। "उपासना पाण्डेय"हरदोई (उत्तर प्रदेश)

उपासना पाण्डेय की अन्य किताबें

मदन मोहन सक्सेना

मदन मोहन सक्सेना

बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति... रूठे हुए शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने......... https://www.facebook.com/MadanMohanSaxena

20 दिसम्बर 2017

बाल किशन यादव

बाल किशन यादव

उपासना जी उत्तम लेख है|

24 नवम्बर 2017

Satish Agnihotri

Satish Agnihotri

बहुत खूब।

17 नवम्बर 2017

mahesh

mahesh

बहुत दिल से चाह ने वाले ही ऐसा लिख सकते है

14 नवम्बर 2017

mahesh

mahesh

बहुत दिल से चाह ने वाले ही ऐसा लिख सकते है

14 नवम्बर 2017

उपासना पाण्डेय

उपासना पाण्डेय

बहुत बहुत आभार

1 नवम्बर 2017

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दहेजप्रथा

10 अक्टूबर 2017
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सर्द सी रात और वो जनवरी की मुलाकाततुम्हारा वो प्यार,मेरा वो तुमसे मोहब्बत का इजहारवो तेरा सुहाना सा सफर और वो जनवरी की हमारी पहली मुलाकात, तुम्हारा मेरी ज़िंदगी मे आनाऔर ज़िन्दगी का एक पल का सफर उम्र भर का तुम्हारा साथ और तुम्हारा वो अपनेपनका एक एहसास, और तुमसे मिलने का

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कहानी-मेरी क्या पहचान है

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क्या है अस्तित्व मेरा

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दिल मे नही रुकते अब मेरे जज्बात ,तुम रहते हो मेरे दिल के पास ,मुझे फर्क नही पड़ता कि तुम रहते हो मुझसे दूर,बस तुम्हे कोई जब देखता है, तो दिल पता नही क्यों हो जाता है उदास,उसको भी खबर है कि तुम सिर्फ मुझसे मोहब्बत करते हो,मगर न जाने कैसे अजीब सा होता है एहसास,कि कही को

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लघुकथा- बिखेरती मुस्कान

1 नवम्बर 2017
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रोशनी?? ,जी मेमसाहब ,मैं बस बर्तन साफ करके आती हूँ ,कुछ काम जो बाकी है जो जल्दी ही खत्म करके ही घर जाऊँगी। "हाँ"और कुछ कपड़े है वो लिए जाना रिया को पसन्द थे सो उसने तुम्हारी बेटी रुचि को देने को बोला है।ये बोलकर भारती अपने बेडरूम में चली गयी। "मेमसाहब" हाँ बोलो फ़ोन में व्यस्त भारती ने ऐसे बेपरवाह होक

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लघुकथा-अनजाने रिश्ते की डोर

21 नवम्बर 2017
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मीरा ने सुबोध से जिंदगी भर का साथ माँगा। मगर किस्मत भी अजीब खेल खेलती है। शादी के एक साल बाद ही मीरा ने सुबोध को खो दिया। जिंदगी कितनी निराश हो गयी थी! हर सपना कांच की तरह टूट गया। मीरा एक स्कूल में पढ़ाने लगी थी। पैसे की कोई कमी नही थी । मगर ऐसा कोई पल नही गुजरा जब सुबोध की याद में रोई न हो। रोज की

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लघुकथा-दोषी कौन हैं

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कहानी-सौतेली माँ नही हूँ

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कविता - इंसान बन जाओ

5 अप्रैल 2018
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कभी हिंसा और दंगे के सिवा , कुछ काम ऐसा तो कर, मन मे ठान ले ये तू कि, कोई गरीब न सोये भूखे पेट, उनको रोटियों का निवाला दे देते लोग, आरक्षण और जातिवाद के बहाने, खून की होली मत खेल ो, कुछ नेक काम कर लेते अ

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तन्हा सी थी ये ज़िन्दगी

5 मई 2018
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