साहित्य कार , पत्रकार व समाज सेविका
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हरियाली में आँखे खोली, शबनम मेरा नूर था, बचपन मेरा बड़ा क्षनिक था, पर , अपने यौवन पर मुझको बड़ा गुरुर था, धरती से उपर उठकर , अंबर को छुने का सुरूर था, पर, नियति को ये मंजूर न था, अलग हुई
बहुत पुरानी बात है l जब सृष्टि कर्ता धरा पर रात्रि के प्रकाश के लिए प्रकाश पुंज का विचार कर रहे थे उन्होंने सर्व प्रथम मोमबत्ती की रचना की l पर मोमबत्ती को अपने बनावट से परेशानी थी l वो सोचती ' एक तो