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lavdeepkaur

लवदीप कौर संधू

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lavdeepkaur

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पुस्तक के भाग

1

शायद यही इश्क़ है

19 अक्टूबर 2015
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7
2

शायद यही इश्क़ है, शायद यही प्यार हैजब एक अंजाना अपना लगता हैफिर ख़ूबसूरत हर सपना लगता हैवो इक नाम शाम सवेरे जपना लगता हैशायद यही इश्क़ हैशायद यही प्यार हैजब दिल तेज़ धड़कता हैइक नज़र दीद को तरसता हैहो दीदार, तो ख़ुशियो  का सावन बरसता हैशायद यही इश्क़ है शायद यही प्यार हैहै म‘आलूम कि वो तेरा हो सकता

2

यादें

20 अक्टूबर 2015
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 लोग आते है चले  जाते है बस दिल  पर एक छाप  छोड़ जाते  है ज़िंदा रहने  को बस अपनी यादें दे जाते  है हर घडी उनके साथ बीते  हुए पल याद  आते  है उनके करीब न होने के ख्याल अंदर ही अंदर तोड जाते  हैजीते जी वो रिश्ता ही ऐसा जोड़ जाते  है जाने क्यों खुदा को अच्छे लोग  ही सुहाते  है क्यों बुरे लोगो  वो नही ले

3

इश्क़

27 अक्टूबर 2015
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कहती  है दुनिया इश्क़ आग है , जो बुझे न बुझाए पर इश्क़ सबा का झोंका है जो रूह को सुकून दिलाये इश्क़ तो शीतल पानी है जो  जन्मों की प्यास मिटाये कहती है दुनिया इश्क़ आग का दरिया  है और डूब के जाना  हैपर इश्क़  को  शांत नदिया  है जिसमे तैरके पार उतरना है इश्क़ तो  बहता झरना है , जिसकी कलकल में चित्त शांत करन

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