शायद यही इश्क़ है, शायद यही प्यार है
जब एक अंजाना अपना लगता है
फिर ख़ूबसूरत हर सपना लगता है
वो इक नाम शाम सवेरे जपना लगता है
शायद यही इश्क़ हैशायद यही प्यार है
जब दिल तेज़ धड़कता है
इक नज़र दीद को तरसता है
हो दीदार, तो ख़ुशियो का सावन बरसता है
शायद यही इश्क़ है शायद यही प्यार है
है म‘आलूम कि वो तेरा हो सकता नहीं है
पर क्या करे जब दिल -ओ-दिमाग पे छाया वही है
अजी ये मोहब्बत है, न कुछ गलत न सही है
शायद यही इश्क़ है शायद यही प्यार है
अब इस बेक़रारी में भी क़रार है
नयन को नींद तो जैसे नागवार है
जब चढ़ा चाहत का ख़ुमार है
शायद यही इश्क़ है, शायद यही प्यार है
हााँ होता उनके महबूब सेरश्क़ है
बहता कभू कभू दरया-ए-अश्क़ है
पूछते है ख़ुदा से क्या यही इश्क़ है?
कहता है ख़ुदा भी हााँ, शायद यही इश्क़ है
शायद यही प्यार है
लवदीप कौर