कहानी पुरानी है पर नई जैसी सुनाऊंगा,.....
लखनऊ में किराए का रूम और थोड़ी सर्द तो ज्यादा गर्म राते में, जिसमे हम और हमारे दो रूम पार्टनर । सफर से एक रात पहले सफर के बारे में चर्चा करते हुवे कि अगले दिन हमे कहां चलना चाहिए,
फिर हमने पास के इमामबाड़ा जाने का फैसला किए और अब चर्चा खत्म कर अपने बिस्तर को चले अब हम अगले कल के इंतेजार में अपनी निंदे पूरी करने में पूरे मग्न, स्टूडेंट लाईफ में आपको देर से सोने वाले जरुर मिलेंगे अगर ओ विद्यालय नही जा रहे है तो ऐसा ही कुछ मंजर हमारे साथ भी घटित हो रहा हम भी देर रात से सोने गए और सुबह उठना मुनासिब ना हुआ हम लोग उठे तब जब सूर्य सर पर आ चुका था और हम सब उठकर अपनी दैनीय क्रिया करने के बाद, भोजन बनाने की तैयारियों में लग गए।
भोजन बन जाने के बाद हम सब भोजन का सेवन करने के बाद कुछ घंटे आराम करते हैं और फिर अपने मंजिल को प्रस्थान करते हैं, हम तीनो लोग ऑटो से इमामबाड़ा को निकले और वहां कुशल पूर्वक पहुंच जाते है। मै अक्सर ही जब भी किसी ऐसी जगह जाता हुं जो मेरे लिए या फिर मेरे साथ वालों के लिए नया हो उस दौरान मैं उन्हें गाइड करता हूं और जैसा की मैने बताया उसी प्रकार उन्हें मै रास्ते दिखाता और हर ओ छवि दिखाता को इमामबाड़ा की खूबसूरती को निरखने का काम करती है, हालांकि ये मेरा पहला सफ़र नही है इमामबाड़ा के लिए मैं करीब चौथी बार आया था इस बार, ऐसे ही सब ऐतिहासिक जगहों और इमारतों को देखते आगे बढ़ ही रहे थे की तभी बादलों का गर्जना शुरू और हल्की सी धीमी रफ्तार में बारिश होनी लगी हम लोग दौड़ने लगे और भागने लगे कुछ ज्यादा मात्रा में लोग छिपे हुवे थे हम लोग भी वही गए और उस छत का सहारा लेकर बारिश खुलने का इंतेजार करने लगे।
इंतेजार के दौरान मेरी नजर एक पास खड़ी हसीना पर पड़ी जो वाकई खुदा के हाथो फुरसत में तैयार की गई हो, मेरी तो नजरे नही हट रही थी उसे देखने के बाद पर क्या करते उस हसीना के साथ उसके परिवार वाले भी थे जिनके सामने मुझे उस हसीना से नज़रे मिलाने में दिक्कतें हो सकती थी फिर हम उस हसीना को देखना बंद कर, बारिश के खुलने का इंतजार करने लगते हैं।
बारिश कुछ समय बरसने के बाद थमने लगती हैं और हम पानियो के धीमी गति से गिरना देख हम वहा से निकल जाते हैं और लोग भी वहा से अपनी मंजिल की तरफ़ निकलने लगते और मिनट बाद पानियो का गिरना बंद ही जाता है और हम फिर इमामबाड़ा की खुबसूर्तियो का लुत्फ उठाने लगते है कि तभी हम में एक मेरे से कहता है कि 'यार तुझे ओ लड़की देखें जा रही थी, मुझे लगता है तुझे ओ पसंद करती है '।
मैने कहा चल झूठा, ऐसा कह की तुझे देख रहि थी मैने उसे देखा ही नही। बस एक झलक देखा मैने।
फिर ओ कहने लगा अछा चल तूझे यकीन नही तो मेरी बात मान अगर ओ तुझे पसंद करती होगी तो जिधर हम जाएंगे उधर ओ भी जायेगी।
मैने कहा चल ठीक देखते हैं,.....
कुछ वक्त बाद हम एक इमामबाड़ा में बने एक ऐतिहासिक पोखरे का मुआयना कर रहे की तभी हमारी नजर उस हसीना पर पड़ती है जिसके बारे हम कुछ देर पहले बाते कर रहे थे, ये देख हम में से एक ने कहा देख मेरी बातें सच निकली की नही ओ तुझ्से प्यार करती, तुझे पसंद करती है तू मानता क्यू नही।
मैने कहा ये इत्तेफाक भी तो हो सकता है, हां अगर ओ एक बार और हम लोगों से टकरा जाए तो यकीन हो जायेगा की वाकई उसे हमसे मोहब्बत है या फिर ओ हमे पसंद करती है।
और हम फिर वहा से आगे बढ़े और भी ऐतिहासिक चीजे देखने। हम सभी ऐसे ही देखते और घूमते फिर जब हमे लगा की अब हम घर लौटना चाहिए तो हम सब घर के लिए निकल जाते हैं और तभी मै नजरे निचे किए पैंट को थोड़ा ऊपर करके चल रहा था क्यूंकि बारिश के वजह से सड़को पर थोड़ा सा पानी लग गया था और गाड़ियों का आना जाना लगा था जिनके आने जाने से ऊपर कुछ पानी के छीटें आ रही थी इस वजह से नज़रे निचे करके और पैंट ऊपर करके चल रहा था कि तभी औरतों बच्चो ओर मर्दों का ग्रुप पास से गुजरता है मुझे एक पल को आभास हुआ कि ये परिवार उसी हसीना का जो मुझे एक टक निहारे जा रही थी।
पर मैं नजरे निचे किए आगे बढ़ता रहा ओर एक सुरक्षित जगह पहुंच कर उसे पलट कर देखता हूं तो क्या पाता हूं कि वह मुड़ के देख रही होती है मानो जैसे मुझे अपने पास बुला रही, उसकी नज़रे इतनी हसीन थी जो ऐसा कुछ याद दिला दी रही थी मानो जैसे सदियों के बिछड़े हम दोनो हो।
पर मेरे दोस्तों के कहने पर मैं ये "सफ़र-ए-मोहब्बत" को छोड़ रूम की तरफ़ निकल जाता हुं।
और हम सब इतना घूम लेने के बाद थक भी चुके थे, अब हम में चलने की शक्ति नही थी तो ईश्क कहा से करते, उसके बाद हम सब रूम पर पहुंच कर दैनिय क्रिया के साथ अपना दिन गुजारने लगे।