माँ का आना,माँ जब आती है घर खुशियों से भर जाता है।
घर घर कहाँ रह जाता है रंगों से भर जाता है।
सकुचा जाती है कामवाली की मम्मी जी जो अब आई है,निर्देशों की पुड़िया लाई है।
ये गीला कपड़ा यँहा क्यों डाला,करी में नमक है क्यों ज्यादा कर डाला।
पोछा-झाड़ू से लेके ,घर के बर्तनों तक,पंखों जालो का भी निरक्षण कर डाला।
सुबह की पहली किरण से जग जाती,नातिन पर खूब दुलार लुटाती,वक़्त बेवक्त दुनिया का ज्ञान बताती।
वो दोनों की नोकझोंक में दिन बीत जाता।छोटी को दुलारती,तेल-मालिश के गुन बताती।
अम्मा जो आ जाती घर कोई रंगशाला सा हो जाता। जो गुस्साती किसी पे तो सुर्ख लाल सा होता घर,जब हस्ती तो धानी हो जाता,जब दुलारती तो गुलाबी हो जाता।
लेकिन जब जाती माँ वापस तो सब उदास सा हो जाता,कभी जो बिचकती थी मुँह उस कामवाली को भी रोना आ जाता।
घर ,दरवाज़े,पंछी,नातिन,माँ की दुलारी बिटिया का मन भर आता।