शिवराम जी जल्दी-जल्दी बिस्तर पर छूट गई पेशाब को साफ करने में लगे थे ताकि बहू-बेटा ना देख लें। कल ही तो बहू यामिनी ने नई चादर बिछाई थी और बेटे सुभाष को सुनाया था कि अगर पापा जी ने फिर से चादर खराब की, तो वह नहीं साफ करेगी, भले ही घर छोड़ना पड़े। शिवराम जी को किडनी की समस्या के चलते ऐसा कभी-कभी हो जाता है। बेचारे मनोहर जी को अफसोस भी बहुत होता था।
जल्दी से चादर हटाकर शिवराम जी बाथरूम में उसे धोने लगे, यह सोचकर कि बहू आज बेटे के साथ अपने भाई की शादी के कपड़े लेने गई है, तो देर से लौटेगी। भूख भी लग रही थी, पर मन का डर उनके हाथों को तेजी से काम करने को कह रहा था। चादर भीगने के बाद उठाई नहीं जा रही थी, और उनकी सांसें फूलने लगीं। तभी उन्होंने सामने अचानक बेटे-बहू को खड़ा पाया। वे बस इतना बोले, "बहू, अब नहीं होगा... मैंने साफ कर दी है।"
बेटे सुभाष ने अपने पिता को सहारा देकर कुर्सी पर बैठाया। बहू ने नाराजगी से कहा, "देख लो, फिर तुम्हारे पिता ने बिस्तर खराब कर दिया। कितनी बदबू आ रही है। इन्हें अस्पताल में भर्ती करवाओ।" सुभाष ने बहू को शांत करते हुए कहा, "तुम अपने मायके जा सकती हो। उस बाप को कैसे छोड़ सकता हूँ, जिसने मेरी पैंट तक साफ की थी जब मैं कच्छे में पोटी कर देता था। उस बाप का पेशाब नहीं साफ होगा, जिसकी यूनिफॉर्म पर मैंने उस दिन टॉयलेट कर दी थी जब पिता जी अपने सम्मान समारोह में जा रहे थे।"
सुभाष ने अपने पिता को संभालते हुए कहा, "चलिये पापा, आप कितने गीले हो गए हैं। ठंड लग जाएगी। आपके लिए चाय बनाता हूँ।" बेटे ने दीवान से नई चादर निकालकर बिस्तर पर बिछाई, शिवराम जी को बैठाया, उनके कपड़े बदले और अपने हाथों से चाय पिलाने लगा। शिवराम जी के कंपकंपाते हाथ बेटे के सिर पर आशीर्वाद देने के लिए आ गए। उनकी आँखों से आँसू बह निकले, जिन्हें वे धोती के कोने से पोंछते जा रहे थे। उन्होंने अपनी पत्नी की तस्वीर को देख मन ही मन कहा, "देख ले विमला, तू कहती थी मैं चला जाऊंगा तो कौन ख्याल रखेगा मेरा। हमारा सुभाष देख कैसे तेरे बुढ़ऊँ की सेवा कर रहा है।"
दरवाजे पर खड़ी बहू यामिनी भी पश्चाताप के आँसू बहा रही थी। इस घटना ने उसे अहसास दिलाया कि परिवार का हर सदस्य, चाहे कितना भी कमजोर क्यों ना हो, अपने स्नेह और सम्मान के हकदार होते हैं।