उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव में एक परिवार रहता था जिसके मुखिया श्री ओमकार जी थे उनके तीन बेटे थे दूसरे नंबर के बेटे का बड़ा बेटा जिसका नाम हनुमान प्रसाद था आज हम उसकी ही कहानी जानेंगे
हनुमान प्रसाद बचपन से ही बहुत मेहनती था परन्तु दुर्भाग्य वश ओमकार जी को बचपन से ही पसंद नहीं था | हनुमान प्रसाद को अपने दादा , दादी का प्यार दूसरे बच्चो की अपेक्षा बहुत ही कम मिला परन्तु हनुमान प्रसाद सरल स्वभाव का था इस वजह से वह सबसे प्रेम करता था जैसे - जैसे हनुमान प्रसाद बड़ा होता गया उसने अपने परिवार की जिम्मेदारी लेनी शुरू कर दी | हनुमान प्रसाद घर के काम भी करता और साथ में पढाई भी करता था हनुमान प्रसाद १०वी कक्षा पास करने के बाद दिल्ली में जाने और पढाई के साथ-साथ नौकरी करने का फैसला किया | हनुमान प्रसाद दिल्ली में पढाई के साथ नौकरी भी करने लगा | हनुमान प्रसाद ने पुरे लगन के साथ अपनी पढाई जारी रखी और साथ में एक अच्छी नौकरी भी करने लगा | हनुमान प्रसाद को 3000 प्रति माह तनख्वाह भी मिलने लगी
हनुमान प्रसाद अपने मालिक के घर पर ही रहने लगा और नौकरी के साथ अपने मालिक की सेवा भी करता था हनुमान प्रसाद के जीवन में ऐसे भी दिन आये जब उसके जेब में किराया देने तक के पैसे नहीं हुआ करते थे आखिरकार समय के साथ हनुमान प्रसाद की तनख्वाह भी बढ़ गयी और एक दिन वह अपने घर वापस घूमने आया |
लेकिन अब समय बदल चूका था ओमकार जी को अब हनुमान प्रसाद से अधिक लगाव हो गया था एक दिन ओमकार जी ने हनुमान प्रसाद सेबातों ही बातों में कहा की उसके एक भी पोते में ऐसे गुड नहीं है कि वह कोई सरकारी नौकरी पा सके | हनुमान प्रसाद को यह बात थोड़ी बुरी लगी और उसने सोचा कि क्यों न सरकारी नौकरी के लिए प्रयास किया जाये फिर क्या था |
हनुमान प्रसाद ने वापस दिल्ली जाकर नौकरी करने का मन बदल दिया और अपने ही शहर में एक दुकान खोल ली हनुमान प्रसाद दिनभर दुकान पर काम करता और रात में डी एम बनने की तयारी करने लगा और दो साल की कड़ी मेहनत के बाद आखिर हनुमान प्रसाद ने परीक्षा में सफलता हासिल कर ली |
इस बात का किसी को आभास नहीं था की हनुमान प्रसाद कुछ ऐसा कर जायेगा हनुमान प्रसाद ने अपने डी एम् बनने की पहली खबर अपने पिता जी को दी | उधर गाँव में लोगों को जब इस बात की खबर हुई तो लोग ओमकार जी को बधाई देने पहुंचे | ओमकार जी को जब इस बात का पता चला तो उनको विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनक पोते ने इतना बड़ा काम किया है | तभी हनुमान प्रसाद अपने पिता जी के साथ घर पहुंचे और अपने दादा जी को गले लगा लिया और रोने लगे ओमकार जी ने हनुमान प्रसाद को गले लगते हुए कहा बेटा मुझे तुम पर गर्व है | हनुमान प्रसाद का पूरा परिवार ख़ुशी से झूम उठा दूसरे दिन हनुमान प्रसाद ने अपने दादा को पहली बार डी एम् की गाड़ी में बैठाया गाड़ी में बैठते ही ओमकार जी के आँखों में आंशू आ गए |
और उन्होंने बचपन में हनुमान प्रसाद के साथ किये दुर्व्यवहार के लिए सबके सामने क्षमा मांगी और उनके सपने साकार करने के लिए धन्यवाद भी किया |