आज भी तेरी साड़ी पहनी,
तुझसा किया श्रृंगार।
मां तू थी तो कितना सुन्दर,
लगता था ये संसार।
अब भी गूंजती है तेरी पायल की,
मेरे मन में वो मधुर झंकार।
पीहर के घर की हर ईंट पूछती है,
कहां है तेरी सरल मां सूना है घर द्वार।
मां तेरी ओर से ही करती रहती हूं,
बहन -भाई से ढेर सारा प्यार।
लगता है बजेगी कभी तो फोन की घंटी,
कभी तो भगवान के घर से तू लगायेगी कॉल।
पूर्णिमा जोशी"पूनम सरल"