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कविता

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"जय गणेश, जय हो गणपति की, मंगलमूर्ति, सुजान, प्रथम पूज्य सारे देवों में, श्री गणेश भगवान, एकदंत हैं, दयावंत प्रभु, शिव-गौरी के लाल, विघ्नहर्ता, सुखकर्ता, सबका सदा करें कल्याण, पूजा करे जो गणना

ना कोई बाधा, ना ही उलझन, ना मुश्किल, परेशानी, बाकी मन में रहे न उसके दुविधा का कोई नाम, ग्रह, नक्षत्र, स्वयं काल भी नतमस्तक है उसके आगे, जिसने मन में बसा लिया है पुरुषोत्तम श्री राम, लाख जतन कर को

रात की चादर में, तारे मुस्काते, चुप्पी की गहराई में, कुछ बातें बताते। सपनों की डोरी से, आसमान को बांधते, निशब्द गीतों में, दिलों को साधते। हर तारा एक कहानी, अनकही सी गाथा, अंधेरे में छुपी

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कुछ लंबी शामें सिरहाने पड़ी... बीतने का नाम न ले रहीं। कुछ दबी शिकायतें अनकही, कुछ रूठी सदाएँ अनसुनी। एक दुनिया को कहते थे सगी, हमारे मखौल से उसकी महफ़िलें सजने लगी।  ज़ख्म रिसते हैं, मर्ज़ क

मेरी कविताएं ही मेरी दौलत है, मेरी हस्ती इन्हीं की बदौलत है। इनके हर हर्फ को मैंने खूबसूरती से चुना है, फिर जीवन के एहसासों के धागों में बुना है। अनुभवों को एक लय में पिरोया है, छोटे-

वो लाल डायरी, जिसमे लिखे हैं वो राज। जिसे बताना चाहता, न कोई कभी। कुछ काले कारनामे, सफेद पोशाक की आड़। वो लाल डायरी, जो बहुत है खास। जिसमे लिखे है, कई राज। कुछ मजेदार, कुछ खतरनाक। कुछ नाम है, जो है खा

वो आकाश, जो मेरे दिल को छू जाता है, जो होता है कभी, बादलो से भरा, तो कभी खाली। कभी करता वो वादे, बरसती बूंदों संग, उन ठंडी हवाओ का। जो करता है पसंद, दिल मेरा। मगर न जाने क्यों, ये आकाश तोड़ता दिल, न ज

एक गिलास पानी  'कविता' कभी वो है, कभी हम है। उसके बाद जो पानी कम है,  बशर्ते, पी नहीं सकते उसको,  इसी बात का गम है। गिलास तू अपना पानी बिखेर देता है,  जब मर्जी आए, तब पानी रख लेता है। बता मेरे गिलास

अधूरे मन की आस

जंगल का देवता हूँ मैं, प्रकृति का रक्षक हूँ मैं। यहाँ घने जंगलों में, मैं सदा निवास करता हूँ। मेरी आवाज आई धरती से, बारिश के पानी में घुलता हूँ। जंगल की हर जीवित चीज़, मेरे बिना अधूरा है रहता।

गुलाब के फूलों में जो सबसे खूबसूरत होते हैं, वह अपने रंग की वजह से लोगों के दिलों में रहते हैं। लेकिन कुछ फूल होते हैं जो काले होते हैं, जो लोगों के मन में अजीब से ख़याल जगाते हैं। उनमें से एक होत

डरावनी काली बिल्ली रात के अंधेरे में, अपनी विशाल आंखों से सबको देती हैं डरावनी नजरें। जब वह भटकती हैं सड़कों पर, तो लोग उससे डरते हैं, क्योंकि उसकी काली त्वचा और भावों से भरी आंखें हैं उसके साथ। ब

गधे को तो कोई नहीं जानता है, वह भूरा और चौड़ा, भारी होता है। उसकी खुर्री फिसलती रहती है, फिर भी वह अपनी जगह से हटता नहीं है। एक दिन गधा सोते हुए था, आसपास खाली-खाली था। तभी वहां से एक कुत्ता गुज

धर्म का रक्षक बनना हमारा कर्तव्य है, पर राजनीति के खेल में अपना दिल न लगाये। धर्म दूसरों के लिए जीने की शिक्षा देता है, पर राजनीति अपने हित के लिए सब कुछ कर जाती है। धर्म ने जीवन को समझाया है, पर

मेरे शहर की यह बात तो नहीं ...मेरे गांव की यह बात है . . .यहाँ कोई दिवस तो नहीं मनाया जाता ...लेकिन मजदूरों को सताया भी नहीं जाता ...आज भी मजदूर मजदूरी करने जाएंगे ...शहर के वासी मजदूर दिवस मनाएंगे ..

एक था ड्रैगन, बहुत बड़ा, बहुत ही ताकतवर। जमीन पर चलता था, हवा में उड़ता था, मुंह से आग उगलता था। ऐसा बताया था, एक बुजुर्ग ने। जिसकी हर बात थी, पत्थर की लकीर। पहले भी खोल चुका था, वो कई राज। आ

उड़ता हुआ मोरपंख नजर आता है, अद्भुत रंगों में सजा इसका सफ़र है। आसमान की ऊँचाइयों में लहराता है, अपनी कल्पनाओं का खुला दरवाज़ा है। ये मोरपंख किसी से नहीं डरता, आज़ादी का संदेश दुनिया को देता है।

देवता और असुर, ये दोनों थे अनेक,  अपनी शक्ति का उपयोग, करते थे दोनों चेतना से नेक। देवता सत्य, निष्कपट और निष्काम, असुर माया, मोह और काम में उलझे रहते थे व्यापक आराम। देवताओं की सभा में न्याय और श

एक दिन खरगोश और लोमड़ी, मिल कर घूम रहे थे आम की बाग़ में। खरगोश बहुत ऊँचे झाड़ियों के पास था, जबकि लोमड़ी नीचे घास के मैदान में थी। खरगोश बोला, "हमें अपने आप को स्वस्थ रखना चाहिए। दौड़ने और खेलने

बहुत सी चींटियां और मक्खियां होती हैं, गूंजती उनकी आवाज़ में होता हैं जीवन का सारा राज़। चींटी की चाल नाज़ुक होती हैं, वो भरती अपनी पेटी आशा से भरती हैं। इसके खिलौने बचपन की याद दिलाते हैं, कभी च

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