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मैं महेश तिवारी , पेशे से स्वतंत्र पत्रकार हूँ। राजनीतिक और समसामयिक विषयों पर लेखन कार्यकरता हूँ। इसके साथ अभी तक देश के लगभग सभी अखबारों के लिए लेखन कर चुका हूँ ,मैं महेश तिवारी , पेशे से स्वतंत्र पत्रकार हूँ। राजनीतिक और समसामयिक विषयों पर लेखन कार्यकरता हूँ। इसके साथ अभी तक देश के लगभग सभी अखबारों के लिए लेखन कर चुका हूँ

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लेख-- सरकारें बदल जाती हैं, व्यवस्थाएं क्यों नहीं बदलतीं

27 दिसम्बर 2017
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सरकारें बदल जाती है, व्यवस्थाएं क्यों नहीं बदलती। चुनावी मुलम्मा खड़ा किया जाता है, लेकिन जनतंत्र की आवाज़ को क्यों अनसुना कर दिया जाता है। सामाजिक पैरोकार बनने की बात होती है, लेकिन हकीकत से व्यवस्था मुँह क्यों मोड़ लेती है। तो क्या अब समय आ गया है, कि जनता उग्र हो

लेख-- लोगों के माथे पर ग़रीब लिखना उचित नहीं

25 दिसम्बर 2017
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वो राम की खिचड़ी भी खाता है, रहीम की खीर भी खाता है, वो भूखा है जनाब उसे, कहाँ मजहब समझ आता है। किसी न काफ़ी विचार-विमर्श के बाद इन लाइनों को गढ़ा होगा, लेकिन देश के सियासतदां तो धर्म औऱ मज़हबी राजनीति से ऊपर उठ सकें नहीं। तभी तो गरी

लेख--- देश में असुरक्षित होता बचपन

10 सितम्बर 2017
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आज समाज की स्थिति में असामाजिक तत्वों का समावेश अधिक होता जा रहा है, फिर हम नए भारत का निर्माण किसके लिए कर रहें हैं? जब देश के वर्तमान ही भविष्य के लिए सुरक्षित नहीं, फ़िर क्या बात की जाए? किस संस्कृति और आचरण को महत्व दिया जाए? इस बाज़ार में सब नंगे नजऱ आ रहें हैं। आज समाज को हवशीपने का जो ज्वार लगा

लेख-- व्यवस्था की टूटी चारपाई, मीडिया और हमारा समाज

7 सितम्बर 2017
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संविधान में मीडिया को लोकतंत्र को चौथा स्तम्भ माना जाता है। इस लिहाज से मीडिया का समाज के प्रति उत्तरदायित्व और जिम्मदरियाँ बढ़ जाती हैं। मगर क्या वर्तमान वैश्विक दौर में जब कमाई का जरिया बनकर मीडिया रह गया है। वह समाज के प्रति अपने दायित्वों का सफल निर्वहन कर पा रहा है। उत्तर न में ही मिलेगा, क्योंक

लेख-- ब्रिक्स में दिखी भारत की गर्जना

5 सितम्बर 2017
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आर्थिक विशेषज्ञो की माने, तो ब्रिक्स देशों की आतंरिक व आर्थिक स्थिति के आधार पर भारत की स्थिति हर दृष्टिकोण से वर्तमान में सबल नज़र आती है। उसके साथ भारत वर्तमान दौर की विश्व व्यवस्था में सबसे मजबूत जनाधार की लोकतांत्रिक सरकार है। साथ-साथ अगर अर्थव्यवस्था की दिशा में भारत तेज़ी से बढ़ रहा है, तो विश्

लेख-- राष्ट्र का उदय और अस्त गुरु के हाथों में

4 सितम्बर 2017
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गुरुर ब्रह्मा गुरुर देवो महेश्वरा गुरुर साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः आज यह उक्ति हमारे शैक्षिक परिवेश में शिक्षकों और छात्रों के बीच क्रियान्वित होती नहीं दिखती। आज शिक्षक और छात्रों के बीच खाई गहरी होती जा रहीं है। गुरु हमारे पुनर्जन्म का गर्भ होता है जहां से हमारा सही अर्थों में दोबारा ज

लेख-- आज़ादी के साथ अपने दायित्वों और संवैधानिक कर्तव्यों को समझें

3 सितम्बर 2017
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भारत परम्पराओं और त्योहारों का देश है। हमारी संस्कृति के परिचायक यहीं तीज-त्यौहार हैं। आज त्योहारों की आड़ में हुलड़बाजी समाज में पनप रहीं है। गणेश पूजन की बात हो, या किसी अन्य त्यौहार की क्या उसकी मूल भावना समाज में जीवित है। इस पर गौर करना चाहिए। क्या गणेश उत्सव को

लेख--ये तो उत्तम प्रदेश बनने की निशानी नहीं

2 सितम्बर 2017
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गोरखपुर के चर्चे सियासी गलियारों में तेज़ है। तो उसी गोरखपुर के चर्चे जनमानस के जुबां पर भी है। अगस्त महीने के शुरुआती दौर में 60 बच्चों की मौत ने लोंगो को अचंभित कर दिया था। अब जब महीने के आखिर में भी 42 मौत हो गई । तो जनता के पैर के नीचे से जमीं खिसक रहीं है। इसके अलावा वह हतप्रभ, और व्याकुल हो उठी

लेख-- निजी हाथों में सौप कर कैसे सबको शिक्षा दे पाएगी सरकार?

1 सितम्बर 2017
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हमारे देश की साक्षरता वर्तमान में लगभग 75 फीसद हैं, तो उसका कारण सरकार की सरकारी स्कूलों की अनदेखी के साथ निजी स्कूलों को बढ़ावा देना हैं। फिनलैंड, नार्वे, अजरबैजान ऐसे देश हैं, जो 100 प्रतिशत साक्षर हैं। यह देश के सामने विडंबना हैं, कि हम अजरबैजान जैसे देश की बराबरी साक्षरता के मामले में नहीं कर प

लेख-- राजनीतिक उदासीनता के शिकार गांव और ग्रामीण

31 अगस्त 2017
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भारत की दो तिहाई आबादी अगर जेल से भी कम जगह में रह रही है। तो ऐसे में निजता के मौलिक अधिकार बन जाने के बावजूद छोटे होते मकान और रहवासियों की बढ़ती तादाद प्रतिदिन की निजता को छीन रही है। जिस परिस्थिति में देश में सबको घर उपलब्ध कराने की बात सरकारें कह रही हैं। उस दौर में देश की आबादी का अधिकांश हिस्सा

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