shabd-logo

महिलाओं पर हो रहे तेजाब हमलों को समर्पित मेरी लिखी गयी एक कविता |

7 दिसम्बर 2015

893 बार देखा गया 893

  एक सुन्दर सा वो मासूम चेहरा |

आज भी मिट ना ...पाया है ।।


लाख कोशिशें करीं भले, वजूद मेरा मिटाने
की।
क्या में एक लड़की थी, जो सिर्फ जिस्म
के लिए बनी।। जिस्म भले छीन जाये मेरा,
तेरी जोर जबरदस्ती से । रूह ले ना पायेगा,
तू अपनी बदक़िस्मती से ।।


एक सुन्दर सा वो मासूम चेहरा ।
आज भी मिट ना पाया है ।।


जो समझे थे लाचार मुझे, चेहरा ना मेरी
कमजोरी था । छीन जाये भले
ही रूप मेरा, आत्मसम्मान मेरा जरुरी था ।।
जो एक चेहरा मैंने खो दिया, बदले में सौ रूप नए मिले। एक चेहरे के
बदले में, वापस खोये सारे जज्बात मिले ।।


एक सुन्दर सा वो मासूम चेहरा ।
आज भी मिट ना पाया है ।।


वर्ष हुए वो चेहरा खोये, देख कितने और सूंदर रूप मिले । एक
चेहरे के बदले में, लाख नईं उम्मीद जगीं
।। वो तो एक तन की सुंदरता खोयी । मन
में कितने और सुन्दर सपने बसें ।।


एक सुन्दर सा वो मासूम चेहरा ।
आज भी मिट ना पाया है।।


आज में सबसे ऊपर, सबसे सूंदर औरत हूं । एक चेहरे के बिना
ही, आत्मनिर्भर और सम्मानित औरत हूँ ।
सारी कोशिशें तेरी बेकार हुईं, देख में फिर
आज़ाद हुई । एक सफल और स्वाभिमानी, देख मै
कितनी विराट हुई ।।


एक सुन्दर सा वो मासूम चेहरा |
आज भी मिट ना पाया है।।


घाव मेरे बस तन पर थे, मन को कभी ना मार सका ।
दर्द भले ताजा हैं अब तक, पर मन ढेर उमंगों से भरा ।। आज जो
में सक्षम बन पायी हूँ । तेरे दिए वो घाव
ही, देख मेरी बने दुआ ।।


एक सुन्दर सा वो मासूम चेहरा ।
आज भी मिट ना पाया है।।


वो पूरानी था पहचान, आज बदले में सौ रूप नए मेरे । तू
क्या मिटा पाया वज़ूद मेरा, जब भीतर रंग हजार मेरे ।।


एक सुन्दर सा वो मासूम चेहरा ।
आज भी मिट ना पाया है।।

चारु वार्ष्णेय की अन्य किताबें

सुधांशु तिवारी

सुधांशु तिवारी

Nice writing Nice Writing Miss......

7 दिसम्बर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

मर्मस्पर्शी एवं अत्यंत प्रेरक रचना !

7 दिसम्बर 2015

1

मेरी कविता

7 दिसम्बर 2015
0
2
0

                    आज खुद का ही खुद से मैं एक पंगा रचने जाउंगी,... इन ख़बरों के ठेकेदारों की सारी सच्चाई बतलाऊँगी,मीडिया जिसको लोगों का चौकीदार बनना था,ख़बरों की सच्चाई मे मासूमों की अच्छाई होना था,आज वही दिखता है मुझको करप्टों की पोशाकों में,बिकने को ही आमादा है दिन रात हर पहरों में,गले मिले सलमान स

2

महिलाओं पर हो रहे तेजाब हमलों को समर्पित मेरी लिखी गयी एक कविता |

7 दिसम्बर 2015
0
3
2

  एक सुन्दर सा वो मासूम चेहरा |आज भी मिट ना ...पाया है ।। लाख कोशिशें करीं भले, वजूद मेरा मिटाने की। क्या में एक लड़की थी, जो सिर्फ जिस्म के लिए बनी।। जिस्म भले छीन जाये मेरा,तेरी जोर जबरदस्ती से । रूह ले ना पायेगा,तू अपनी बदक़िस्मती से ।। एक सुन्दर सा वो मासूम चेहरा । आज भी मिट ना पाया है ।। जो समझे

---

किताब पढ़िए