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चारु वार्ष्णेय की डायरी

चारु वार्ष्णेय

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charu varshney ki dir

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पुस्तक के भाग

1

मेरी कविता

7 दिसम्बर 2015
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                    आज खुद का ही खुद से मैं एक पंगा रचने जाउंगी,... इन ख़बरों के ठेकेदारों की सारी सच्चाई बतलाऊँगी,मीडिया जिसको लोगों का चौकीदार बनना था,ख़बरों की सच्चाई मे मासूमों की अच्छाई होना था,आज वही दिखता है मुझको करप्टों की पोशाकों में,बिकने को ही आमादा है दिन रात हर पहरों में,गले मिले सलमान स

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महिलाओं पर हो रहे तेजाब हमलों को समर्पित मेरी लिखी गयी एक कविता |

7 दिसम्बर 2015
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  एक सुन्दर सा वो मासूम चेहरा |आज भी मिट ना ...पाया है ।। लाख कोशिशें करीं भले, वजूद मेरा मिटाने की। क्या में एक लड़की थी, जो सिर्फ जिस्म के लिए बनी।। जिस्म भले छीन जाये मेरा,तेरी जोर जबरदस्ती से । रूह ले ना पायेगा,तू अपनी बदक़िस्मती से ।। एक सुन्दर सा वो मासूम चेहरा । आज भी मिट ना पाया है ।। जो समझे

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