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मैं ही सही हूँ, सबसे बड़ा भ्रम

19 अगस्त 2019

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मैं ही सही हूँ, सबसे बड़ा भ्रम : I'm right, The biggest fallacy

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मैं ही सही हूँ



""तस्वीरें दीवारों से ही नहीं, दिल से भी उतर जाती हैं उनकी , जिन्हें अपने पर खुदा होने का गुरुर होता है। बस जाती हैं यादें दिलों में उनकी , जिन्होंने दिलों को फ़तेह किया होता है। न रहता है ताउम्र जिस्म ज़िंदा इस दुनिया में , नाम रहता है अमर उन्ही का इस जहाँ में , जिन्होंने झुककर जीवन जिया होता है""।


सच्चाई है उपरोक्त पंक्तियों में। हम उन्हें आज भी याद करते हैं, जो अब इस दुनियां में नहीं हैं। उनके काम , उनका व्यक्तित्व [Personality] इतना विशाल था कि अक्सर लोग उनका उदाहरण दिया करते हैं। ऐसे लोग समाज व् परिवार में अपना एक विशेष स्थान हासिल कर लेते हैं। क्या वजह होती है जिससे वो ये मुकाम हासिल करते हैं ??


इंसानी व्यवहार

इंसान का व्यव्हार , उसकी बोली , समर्पण , त्याग शायद ऐसी ही कुछ खूबियाँ उसके व्यक्तित्व की अमिट छाप दिलों पर छोड़ जाती है। वो चाहे कितने भी ज्ञानी क्यों न हों, परन्तु दूसरों के विचारों को सुनना , उनका सम्मान करना ,उनकी अच्छी बातों को अपने चरित्र में आत्मसात करना, जरूरत होने पर ही अपने विचार रखना उनके सम्मान में परस्पर वृद्धि करता है।


परन्तु , दूसरी ओर समाज में ही नहीं, परिवारों में भी हमें ऐसे चरित्र मिल जाएंगे जो इस भ्रम में रहते हैं कि , "उनसे ज्यादा गुणवान , समझदार कोई और नहीं "| उनका हर-एक प्रयास ये जताने का होता है कि उनकी समझ औरों से बेहतर है। ये काम ऐसे नहीं , वैसे करो ! मैं जो कह रहा हूँ /रही हूँ, वो ही सही है !! मेरी बात नहीं मानोगे तो पछताओगे !!! "मैंने कह दिया न , बस मुझसे बहस करने की जरूरत नहीं"। ऐसे व्यक्ति इतने अड़ियल होतें हैं कि अपनी बात को मनवाने में ही अपनी शान समझते हैं। अगर उनकी कमी बताओ, तो मुँह टेड़ा हो जाता है। यदि उनका कद ,रिश्ता बड़ा है तो फिर बोलने वाले की शामत आ जाती है। इसी व्यव्हार के कारण वह इंसान दिल से उतर जाता है। उसकी तरफ देखने , उसकी बातें सुनने में कोफ़्त होने लगती है। झूठे-रिश्ते जिए जाते हैं , औपचारिकतायें निभायी जाती हैं।


सलाह

दामिनी को अपने पति शरद से यही शिकायत थी कि, "वो उसकी बात न तो सुनता था और न ही मानता था "| बच्चों की पढ़ाई के लिए जब उसने कहा कि , "इतने खर्चीले स्कूल में एडमिशन मत कराओ की आधी तनख्वाह फीस में ही चली जाये"| पर शरद नहीं माना और एडमिशन करा दिया। जब शरद से ये कहा गया कि , "दुनिया को दिखाने के लिए महंगी कार , ब्रांडेड कपड़ों की भरमार , बार -बार होटल में जाकर खाने की जरूरत नहीं है , ये फिजूल खर्ची बंद कर दो ", तो उसने यह कहकर दामिनी को चुप करा दिया कि, "तुम चुप रहो , तुम्हें कुछ नहीं पता "| और वो ही हुआ जो दामिनी ने कहा , कुछ समय बाद हाथ तंग हो गया !! बैंक के क़र्ज़ बढ़ गए , क्रेडिट -कार्ड के पेमेंट overdue हो गए , नोटिस आने शुरू हो गए। पेमेंट न करने के झूठे-बहाने बताये जाने लगे। मानसिक-तनाव [Mental tension] बढ़ गया। अगर वो अपनी पत्नी की सलाह मान लेता तो क्या छोटा हो जाता ? शायद ...नहीं।


माँ-बाप जब अपने बड़े-होते बच्चों [Growing children] को ये समझाए कि, "कपडे कैसे पहने , बाल कैसे बनाए ,घूमने कब जाए , कैसे जाए , किसके साथ जाए , किनसे दोस्ती करे "| ये निर्देश एक समय तक तो सही है , लेकिन हर वक्त के निर्देश बच्चों में एक चिड़चिड़ापन पैदा कर देते हैं। उनके मन में ये सवाल जरूर आता है की, "क्या मेरे parents अभी तक मुझे बच्चा /बच्ची समझते हैं" !! क्या उनके रोज -रोज टोकने से मेरे अंदर आत्मविश्वास उत्पन्न हो पायेगा ? क्या मैं हर समय उनकी ऊँगली पकड़कर चलता रहूँगा / चलती रहूँगी?


बच्चे सोचते हैं कि, "उन्हें अपने निर्णय लेने की आज़ादी होनी चाहिए" , जबकि parents ये सोचते हैं की, "बच्चों को अभी हमारे कहे अनुसार ही काम करना चाहिए, क्योंकि हम जो कह रहे हैं वो ही सही है"। यहाँ तक की बच्चे जब व्यस्क [Adult ] भी हो जाते हैं , तब भी उन पर बिना बात की टोका -टाकी चलती रहती है। बस...... , यहीं से खींच -तान शुरू हो जाती है। बच्चे कुछ उल्टा -सीधा कर बैठते हैं और माँ -बाप सिर पकड़कर बैठ जाते हैं। माँ -बाप की यह duty तो है कि वो बच्चों को समझायें , ज़िन्दगी के plus /minus से अवगत कराएं। परन्तु बच्चों के दिल में क्या है , उनकी इच्छाएं क्या हैं , उनकी सोच क्या है , इस बात का भी सम्मान करें। हर बार अपनी बात थोपने की कोशिश न करें। क्यूंकि हर बार..... आप ही सही नहीं होते।


बेटा जब अपने पिता से ये कहता है कि, "मैं एक्टिंग के क्षेत्र में काम करके नाम कमाना चाहता हूँ , तो पिता यह कह कर मना कर देते हैं की इस लाइन में कुछ नहीं रखा है "। बेटा जब क्रिकेट खेलने के लिए कहता है तो भी पिता का जबाब ज्यादातर केस में negative ही होता है। परन्तु , जैसे -तैसे जुगाड़ करके जब बेटा उस क्षेत्र में नाम कमा लेता है तो पिता को उस पर गर्व होने लगता है। कौन........ सही है ??


अतुल ने जब अपने चाचाजी को Medical insurance कराने कि सलाह दी, तो चाचाजी ने यह कहकर मना कर दिया की, " बेटा आज मेरी उम्र 55 वर्ष हो गयी है, मुझे तो आजतक कोई बीमारी नहीं हुई, और न ही तेरी चाची को, क्योंकि उन्होंने बचपन से ही घी व् सूखे मावे खाये हैं"। Medical insurance की जरूरत तुम जैसे नाजुक लोगों को है। तो बात आयी गई हो गई, परन्तु कुछ महीनों बाद जब चाचाजी का accident हुआ तो उनके इलाज में Rs. 50,000/- का खर्च आ गया। तब उन्होंने मन ही मन अतुल के सुझाव को याद किया , पर अब पछताने के अलावा कोई चारा नहीं था। वो इसी भ्रम में थे कि, "उन्हे कुछ नहीं होगा"। ??


क्या हमें हर वक्त अपने आप को ही "सही" मानना चाहिए ? क्या दूसरे लोग हमसे कम समझदार होते हैं ? क्या उनके सुझाव व् कमी बताने से , उनको स्वीकार करने से हम छोटे हो जाएंगे ? शायद ...........नहीं।




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