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मैं तुलसी तेरे आंगन की ( भाग - 1)

8 अक्टूबर 2021

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 ।। ॐ श्री दुर्गाय नमः।।

" अरे ओ महारानी!" बैठी ही रहोगी क्या? खाना कौन लगाएगा,,तुम्हारा बाप?" सास की आवाज़ से तुलसी की झपकी टूट गई जो,,अपने बच्चे को सुलाते - सुलाते ख़ुद भी नींद के आगोश में चली गई थी।

" आई मां जी!" कहते हुए तुलसी ने अपने बच्चे को ठीक से लिटाया और चादर डाल दी,,सुबह से हो रही बारिश की वजह से कुछ ठंडक सी हो गई थी।

उसके बाद फटाफट तुलसी खाना लगाने चली गई,,सुंदर नैन - नक्श, गोरा रंग,,कमर तक लहराते काले घने बाल जिनको समेट कर वो जूड़ा बना रही थी क्यूंकि अगर कहीं खाने में बाल आ गया तो फिर कल की तरह हंगामा खड़ा हो जाएगा,,

सारे खाने को टेबल पर लगाने के बाद,,तुलसी सबके सामने एक एक कर प्लेट रखने लगी,,और बड़ी फुर्ती से खाने को प्लेटों में खाना परोसने लगी,,सबने खाना चालू कर दिया था,,अचानक तुलसी के पति ने थू थू करते हुए कहा," ये मेथी की सब्ज़ी में नमक कितना तेज़ है,,इतना नमक डाला जाता है।"

" जी,,पर मैंने तो थोड़ा ही डाला था"

" तो क्या तेरा बाप आकर डाल गया।"

तुलसी कुछ ना बोली,,सब समझती थी वो ये किसकी हरक़त है और क्यूं की जा रही है,,पर अगर वो कुछ बोली तो ये ख़ुद उसके लिए ही ठीक नहीं था,,तुरन्त संभलते हुए बोली,,

" अरे! उसे छोड़िए,,ये लीजिए आपकी पसंद की भरवां भिंडी,,खा कर देखिए,,कैसी बनी है" भिंडी परोसते हुए बोली।

भिंडी काफी टेस्टी बनी थी,,पर उसकी तारीफ़ करना यह तो मिस्टर राघव देसाई की आदतों में शुमार ही ना था।

" हां,, हां,,ठीक है,,सबको परोसो।"

तुलसी ने आज भी अपने धैर्य से स्थिति को संभाल लिया था,,वरना किसकी इतनी मजाल,, ,कोई उसके पापा के बारे में कुछ कह जाए,, ज़मीन में ना गाड़ देती उसको,,पर मजबूर थी,बहुत मजबूर,,ज़रा सी ग़लती और घरवालों के मंसूबे कामयाब,, ,नहीं,,वो ऐसा हरगिज़ नहीं होने देगी।

चाहें जो हो जाए,,कोई कितनी भी चालें फेंके,,वो किसी को जीत हासिल नहीं करने देगी,,डिनर के बाद सब अपने अपने कमरों में आराम करने चले गए,,,अब केवल तुलसी और मीना,,उनके घर की घरेलू सहायिका ही खाने को बचे थे,,दोनों ने बचे खुचे खाने को अपनी अपनी प्लेटों में परोसा और खाने लगे,,,पूरे घर में मीना ही तो तुलसी की हमदर्द थी,, वर्ना और कोई  तो चाहता ही नहीं था कि वो उस घर में रहे,,

मीना - काहे दीदी? ये किसका काम था नमक तेज़ करने का,,कुछ मालूम है?

तुलसी - और कौन करेगा? मां जी या दीदी,,उन्हीं दोनों में से किसी ने किया होगा।

मीना - पर अच्छा ही रहा आपने संभाल लिया,,नहीं तो आज फिर कोई हंगामा करने की योजना थी उन दोनों की।

तुलसी - वो चाहें जितनी भी योजनाएं बना लें,,कभी कामयाब नहीं होने दूंगी।

मीना - पर मैंने तो बड़ी मालकिन को ही रसोई में जाते हुए देखा था,,शायद उन्होंने ही,,

तुलसी - अरे! करने दो, कोई भी करे,,जो जैसा करेगा भगवान उसको वैसा ही फल देंगे,,,और फिर(खुश होते हुए) ,,मुझे तो भगवान ने मुन्ने जैसा सुंदर फल दे ही दिया है,,मुझे क्या चिंता??

मीना - हां,,भगवान ने तो दे दिया है,,पर क्या ये लोग उस फल को आपकी झोली में रहने देंगे?

तुलसी - ( आवेश में) जैसी बातें कर रही हो मीना? इस घर में तुम ही तो अपनी हो और तुम भी ऐसी बातें करोगी तो मैं कैसे रह पाऊंगी यहां,,मेरे बच्चे को कोई मुझसे अलग नहीं कर सकता,,कभी भी नहीं,,

मीना - अरे दीदी! मेरा वो मतलब नहीं था,, मैं तो बस ये कहना चाहती हूं कि ऐसे जब तक चलेगा,,आखिरी आपको मेरा मतलब है हम दोनों को भी तो कुछ सोचना होगा।

तुलसी - हां,,तुम ठीक कहती हो,,अब बहुत हो गया है, इन लोगों का सच तो सबके सामने लाना ही होगा,, मैं ज़रूर कुछ सोचूंगी,,तुम चिंता ना करो।

दोनों खाना ख़त्म करके टेबल साफ करते हैं,,मीना बर्तन वगैरह साफ करती है और तुलसी अपने बच्चे के पास सोने चली जाती है।

इधर घर की मालकिन नीलम देसाई अपनी बेटी पलक के कमरे में गुस्से से चिल्ला रही थी,,

" क्यूं रे? तू केवल एक ही सब्ज़ी में नमक मिला पाई इतनी देर में?"

पलक - क्या करूं,,भाभी आ गई थीं,,

मिसेज देसाई - कौन भाभी?

पलक - तुलसी भाभी,,

मिसेज देसाई : ( एक ज़ोरदार थप्पड़ मारकर )खबरदार! जो उसको दोबारा भाभी बोला,,इस घर की नौकरानी है वो,,समझ में आया?

पलक रोते हुए बेड पर लेट जाती है और मिसेज देसाई अपने कमरे में चली जाती हैं और खुद से ही बातें करने लगती हैं,," अब क्या जवाब दूंगी नेहा को,,आज तो खाना भी नहीं खाया गुस्से की वजह से ,,पता नहीं कल सुबह क्या हो??"

अगले दिन सुबह भी नाश्ते के समय वैसी ही कोशिशें की जाने लगीं पर आज तुलसी और मीना दोनों होशियार थी,,कोई भी रसोई को खाली नहीं छोड़ रहा था,,दोनों में से एक ना एक रसोई में ही उपस्थित रहीं,,जब तक कि नाश्ता तैयार नहीं हो गया,,,

नाश्ता तैयार होते ही,,मीना ने सबको आवाज़ लगानी शुरू कर दी,,बड़ी मालकिन,,छोटी मालकिन,,बड़े मालिक ,,छोटे मालिक,,राघव भैया ,,नेहा दीदी,,पलक दीदी,,मनीष भैया,,सोनम दीदी,, लकी दीदी सभी लोग आ जाइए,,नाश्ता तैयार है,,

" क्या बात है,,क्यूं चिल्ला रही है इतना" मिसेज देसाई ने गुस्से में कहा,,( आज सारी कोशिशें बेकार हो जाने से वैसे भी गुस्से में थीं)

" अरे मालकिन! मैं तो सबको बुला रही हूं नाश्ते के लिए आज दीदी ने सबकी पसंद के कटलेट बनाए हैं नाश्ते में"

" तो क्या बहुत बड़ी बात हो गई",, आज फिर  राघव की पसंद की डिश ( मन में)

सभी आ जाते हैं,,सिवाय नेहा के,,

राघव - पलक! नेहा को भी बुला लाओ नाश्ते के लिए,कल रात में भी खाना नहीं खाया।

पलक - भैया! मैं गई थी पर उन्होंने मना कर दिया।

राघव - अच्छा! उनसे बोलो जब तक वो नहीं आएंगी,भैया नाश्ता नहीं करेंगे।

पलक - ओके भैया! अभी जाती हूं।

कौन है  ये नेहा,,जिसके लिए राघव इतना परेशान है,क्यों तुलसी को कोई घर में नहीं रहने देना चाहता,,जानने के लिए पढ़िए,,,अगला अंक🙏🙏🙏

क्रमशः


विष्णुप्रिया

विष्णुप्रिया

सुन्दर शुरुआत..👌👌💐

8 अक्टूबर 2021

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मैं तुलसी तेरे आंगन की
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कैसे अपने कॉलेज की सबसे शरारती,,हंसमुख और बिंदास लड़की अपनी एक गलती से समाज के और फिर किसी परिवार के उत्पीड़न का शिकार होती है और आख़िर में कैसे अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से समाज के लिए प्रेरणा बन जाती है,,पढ़िए मेरे धारावाहिक : " मैं तुलसी तेरे आँगन की" में,,,

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