याद जब तेरी आती नींद-चैन नहीं आता है
फिरता हूँ मारा-मारा
भटकता हूँ दर्रा- दर्रा
रास्ता नहीं सूझता
दीखता न किनारा
मिलता न ठाँव कहीं
ठौर न ठिकाना
आगे जो कदम बढ़ाता
पैर जाते पीछे
गिरता हूँ तेरी याद को लपेटे ।
नींद में मेरे करीब वह होती
जागने पर वह पास न होती
बूझ न पता हुआ क्या मुझे है
कोई बताये, उपाय सुझये
अक्ल न आये तुम्हें कैसे पाएं
कोई जगाए रास्ता दिखये
वह जो मिल जाये
जीवन सफल हो जाये
आवागमन से उपराम हो जाये |