अंधेरी रात,,, सुनसान सड़क,,, और उस पर दौड़ती डॉ. बत्रा की कार। बेटवाड़ा से दामिया जाने वाले रास्ते पर हर रात यही दृश्य दिखायी देता।
“ ओह,,,आज फिर लेट हो गया। पूरा दिन अस्पताल में काम करते रहो और रात को घर जाकर धर्मपत्नी के ताने सुनो। वाह बत्रा,,, क्या जिंदगी है तेरी,,,। ” डॉ. बत्रा बड़बड़ाने लगे।
डॉ. बत्रा हाल ही में अपनी पत्नी के साथ दामिया रहने आए थे। वे बेटवाड़ा के एक सरकारी अस्पताल में सीनियर डॉक्टर के पद पर कार्यरत थे। दामिया से बेटवाड़ा के बीच का पूरा इलाका घने जंगलों से भरा था। इसी जंगल में सड़क के किनारे वर्षों पुरानी एक हवेली थी, जिसे “मालराय की हवेली " कहा जाता था। यह हवेली दामिया के एक धनी और प्रतिष्ठित जमींदार मालराय की थी। एक समय मालराय एक संपन्न परिवार के मुखिया थे। उनके परिवार में उनकी पत्नी, उनका बेटा, बेटे की बहू और एक पोता थे। लेकिन विधाता को कुछ और ही मंजूर था। मालराय की यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिक सकी। एक दुर्घटना में उनके बेटे बहू और पोते की मृत्यु हो गयी। यह उन दोनों बूढ़े दंपत्ति के जीवन का सबसे बड़ा आघात था। मालराय की जीवनसंगिनी भी उनका साथ नहीं दे पायी और कुछ दिनों बाद वह भी चल बसी।
मालराय अब अपने जीवन में अकेले पड़ चुके थे। उनके जीने की अभिलाषा ही जाती रही। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति बेच दी और कस्बे से दूर जंगल के बीच यह हवेली बनवायी। इस हवेली में मालराय के साथ-साथ हवेली का चौकीदार भीमा और उसकी पत्नी भी रहते थे। मालराय ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष इसी हवेली में गुजारे थे।
डॉ. बत्रा घर आए और डोरबेल बजायी। दरवाजा मिसेज बत्रा ने खोला। हमेशा की तरह मिसेज बत्रा का मुँह फुला हुआ था। डॉ. बत्रा ने उनका हाथ पकड़ने की कोशिश की लेकिन वह घर के अंदर चली गयी। डॉ. बत्रा भी साँस रोककर अंदर आ गये।
हाथ-मुँह धोकर जब डॉ. बत्रा बाहर आये तो उन्होंने देखा कि मिसेज बत्रा डाइनिंग टेबल पर खाना लगा रही है। डॉ. बत्रा खाना खाने बैठे। मिसेज बत्रा एक तरफ खड़ी हो गयीं।
“ तुम खाना नहीं खाओगी ? " डॉ. बत्रा ने पूछा।
“ मैं पहले ही खा चुकी ! ” मिसेज बत्रा रूखे स्वर में बोली।
डॉ. बत्रा को यह बात पता थी कि शादी के बाद एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब उन दोनों पति पत्नी ने साथ में बैठकर खाना न खाया हो। वह बोले, “ सीरियल देख-देखकर तुम भी ड्रामा सीखने लगी हो। आओ और चुपचाप बैठकर खाना खाओ। ”
मिसेज बत्रा के सब्र का बाँध टूट गया। वे डॉ बत्रा के पास आकर बैठीं और बोली, “ माना कि आपको अस्पताल में बहुत काम रहता है मगर आप शाम को तो जल्दी आ ही सकते हो। पूरा दिन घर में बैठे-बैठे मैं बोर हो जाती हूँ। शाम को जल्दी आने पर हम कम से कम सुकून के दो पल तो बिताएंगे। ” मिसेज बत्रा ने अपना रोष जाहिर किया।
डॉ बत्रा ने कहा, “ मैं भी मजबूर हूँ भाग्यवान ! आजकल मौसमी बीमारियों का दौर है। अस्पताल मरीजों से भरा पड़ा रहता है। अब मुझे आने में देर तो होगी ही। ”
“ हाँ,,,हाँ,,, आपके पास तो हमेशा एक नया बहाना रहता है। मुझे तो अस्पताल के मरीज अब मेरी सौतन जैसे लगने लगे हैं। ”
डॉ बत्रा हँस पड़े। मिसेज बत्रा भी मुस्कुरा दीं। उन्हें पता था कि उनके पति एक दयालु और खुले दिल वाले इंसान हैं। उनकी ड्यूटी शाम तक ही रहती है। इसके बाद वे गरीब मरीजों का मुफ्त में इलाज करते हैं, जिसके कारण उन्हें आने में देर हो जाती है।
अगले दिन सुबह डॉक्टर बत्रा अस्पताल जाने को तैयार हुए। वे नाश्ता करने बैठे तो मिसेज बत्रा बोलीं, “ आपको याद है न,,, आज हमारी शादी की सालगिरह है। ”
डॉ बत्रा चौंककर बोले, “ अरे मैं तो भूल ही गया था। ”
मिसेज बत्रा रूखे स्वर में बोली, “ हाँ, आपको तो बस अस्पताल वाली सौतनें याद हैं। ”
“ अरे भाग्यवान,, सुबह-सुबह मुँह फुलाना अच्छी बात नहीं। ”
“ मुझे कुछ नहीं पता,, आज शाम को आप जल्दी घर आओगे और हम बाहर किसी होटल में खाना खाने
चलेंगे। ”
“ अरे,, अरे ठीक है, भाग्यवान। आ जाऊँगा,, बस। मिसेज बत्रा खुश हो गयी।
डॉ बत्रा अस्पताल चले गये। खुशकिस्मती से आज ज्यादा मरीज नहीं थे फिर भी मरीजों को दवाइयाँ देते-देते डॉक्टर बत्रा को देर हो गयी। अंधेरा गहराने लगा था। वह जल्दी से गाड़ी में बैठे और घर की तरफ निकल पड़े।
घर जाकर उन्होंने देखा कि मिसेज बत्रा सज- सँवरकर खड़ी थी। वह दोनों गाड़ी में बैठे होटल की तरफ चल पड़े। वह होटल बेटवाड़ा में थी। कुछ समय बाद वे होटल पहँचे और वहाँ जाकर खाना खाया। खाना खाने के बाद वे वापस घर की तरफ निकल गये।
रात बहुत गहरा चुकी थी और आज अमावस्या भी थी, जिससे चारों तरफ बहुत गहरा अंधेरा फैला हुआ था। कस्बे में कुत्ते रो रहे थे जैसे कुछ बुरा घटित हुआ हो। चारों तरफ अजीब सा माहौल था।
वे लोग जंगल के बीच में थे। डॉ बत्रा आराम से गाड़ी चला रहे थे कि अचानक उन्होंने ब्रेक मारे। गाड़ी के सामने दुबला-पतला सा बूढ़ा आदमी खड़ा था। उसने एक लंगोटी लपेट रखी थी। उसके एक हाथ में लालटेन और दूसरे हाथ में लाठी थी। वह जल्दी से डॉ बत्रा की कार की खिड़की के पास आया और बोला, “ डॉक्टर साहब,,, मेरी बीवी को बचा लीजिए। वह बहुत बीमार है। मैं आपके हाथ जोड़ता हूँ। एक बार मेरे बीवी को देख लीजिए,,,। ”
डॉ बत्रा ने अपनी पत्नी की तरफ देखा। मिसेज बत्रा को यह बात पता थी कि चाहे आसमान गिर पड़े या धरती फट जाए, उनके पति किसी भी परिस्थिति में पीछे नहीं हटने वाले। उन्होंने हाँ कर दी।
डॉ बत्रा दवाइयों का एक बक्सा हरदम अपने साथ ही रखते थे। उन्होंने वह बक्सा लिया और मिसेज बत्रा के साथ गाड़ी से उतरे। वे दोनों उस बूढ़े के पीछे पीछे चलने लगे। वे यह देख कर चौंक गये कि वह बूढ़ा उस मालराय की हवेली में रहता था। वह हवेली बहुत बड़ी थी पर पुरानी और जर्जर हो चुकी थी। वह दोनों उस हवेली के अंदर गये। वह बूढा बोला, “ मालिक के मरने के बाद अब हम दोनों ही इस हवेली में बचे हैं। ”
वह बूढ़ा उन्हें एक कमरे के अंदर ले गया। कमरे में बिस्तर पर फटे-पुराने चिथड़ों में एक बूढ़ी औरत लेटी थी। उस औरत का शरीर सूखकर कांटा हो चुका था। वह बूढ़ा उस औरत के पास गया और बोला, “ देख मैं तेरे लिए डॉक्टर साहब को बुलाकर लाया हूँ। अब तू बिल्कुल ठीक हो जाएगी। ” वह बूढ़ी औरत मुस्कुरायी।
डॉ बत्रा ने उस औरत को चैक किया और कुछ दवाइयाँ दीं। इसके बाद जब वे चलने को तैयार हुए तो बूढा बोला, “ आपकी फीस ? ”
“ अरे नहीं-नहीं,, फीस की कोई जरूरत नहीं है। इसे मेरी तरफ से एक छोटी सी सेवा समझ लीजिए। ” डॉ बत्रा बोले।
उस बूढ़ी औरत ने हाथ से मिसेज बत्रा की तरफ इशारा किया और बोली, “ मेरे पास आओ बेटी ! ”
मिसेज बत्रा उसके पास गयी। उस औरत ने कपड़े की पोटली में से एक चाँदी का सिक्का निकालकर मिसेज बत्रा के हाथ में रख दिया और बोली, “ तुम यहाँ पर पहली बार आयी हो। यह लो शगुन। ”
“ अरे नहीं,,,,यह मैं कैसे ले सकती हूँ ! ” मिसेज बत्रा बोलीं।
“ ले लो बेटी,, शगुन को मना नहीं करते। ” वह बूढ़ी औरत बोली।
मिसेज बत्रा ने अपने पति की तरफ देखा। डॉ बत्रा ने हाँ में सिर हिलाया। मिसेज बत्रा ने वह सिक्का अपनी साड़ी के पल्लू में बाँध लिया। इसके बाद वे बाहर आ गये। वह बूढ़ा उन्हे छोड़ने के लिए हवेली के दरवाजे तक आया। वे दोनों अपनी कार में बैठे और घर की तरफ चल पड़े।
वे लोग घर पहुँचे। उनका पड़ोसी विनेश अभी तक जाग रहा था। उनको देखकर वह बोला, “ अरे डॉक्टर बाबू ! इतनी रात को भाभीजी के साथ कहाँ से आ रहे हो ? ”
“ दरअसल आज हमारी शादी की सालगिरह थी। इसलिए हम होटल में खाना खाकर आए हैं। ” डॉ बत्रा बोले।
विनेश ने उन्हें सालगिरह की मुबारकबाद दी और पूछा, “फिर भी आप दोनों को इतना समय कहाँ लग गया ?”
डॉ बत्रा ने विनेश को हवेली वाली बात बतायी। डॉ बत्रा की बात सुनकर वह हँस पड़ा और बोला, “ आप भी अच्छा मजाक करते हैं डॉक्टर बाबू ! ”
उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा। उन्हें कुछ समझ नहीं आया। डॉ बत्रा बोले, “ मजाक कैसा ? ”
“ अरे डॉक्टर बाबू ! उस हवेली में तो सालों से कोई नहीं रहता। ”
“ क्या ! ” वे दोनों हैरान हो गये।
“ हाँ,,करीब पंद्रह-सोलह साल पहले उस हवेली के मालिक मालराय जी स्वर्ग सिधार गये। उसके बाद बचे हवेली का चौकीदार भीमा और उसकी पत्नी। लगभग बारह साल पहले भीमा की पत्नी एक लंबी बीमारी के चलते चल बसी। उस समय आसपास के इलाके में अस्पताल की सुविधा नहीं थी। आज से दस साल पहले भीमा की भी मौत हो गयी। ”
विनेश की बात सुनकर वे दोनों डर गये।,,,,,,,,,,,, बुरी तरह डर गये,,,,,,,,,।