ये मन... ये मन बिन डोर की पतंग, ये मन... इस का कोई ओर न छोर, ले चले चहुंओर। ये मन... कभी खुद से, तो कभी खुदा से, करें गिले शिकवे.. ये मन... ख्वाबों, चाहतों के बाग करें हरे, तो कभी इन्हीं के घाव लिए फिरे। ये मन... कभी लगे मनका(मोती), तो कभी लगे मण का( बोझिल)। ये मन... अदा भी इसी से, तबहा भी इसी से। य