राजीव गांधी को पता था कि 1989 में होने वाले चुनावों में उनकी सरकार वापस नहीं आने वाली. लेकिन एक आस तो हमेशा ही बनी रहती है. इसी ‘आस’ के चलते उन्होंने या उनके वित्त मंत्रालय ने कोई कदम नहीं उठाए.ये कहानी है आस की. आस जो कांग्रेस को थी कि ‘लाइसेंस परमिट’ राज देश का विकास कर