प्यारी सी
रवि की सी कांति जग जाति थी देख किसी को नव चेतना छा जाती थी पर नियती की कोई और मँजुरी थी तभी तो वो हमसे दूर होती थी सहसा एक किरण जगी जीवन मेँ चेतना के स्वर दे गई इस अच्छे तन मेँ अचानक चल पड़ा यूँ ही नींद मेँ ढूंढने चल पड़ा उसे काल क्रम मेँ बैठा सूची ही रहा था नवधा मेँ दृष्टिगत हो रहा था दीपिका जैसे ज