आज सबसे बढ़ी बात ये है कि हम सुविधा के गुलाम है -हम किसी सुविधा के आदी (गुलाम) हो जाते है या जब कोई चीज प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दी जाती है या जब कोई चीज घर घर में पहुँच जाती है, तब वह चाहे कितनी भी अवैज्ञानिक क्यों न हो कितने ही रोग पैदा कराने वाली क्यूँ न हो लेकिन हम अपने मानसिक विकारों (लत, दिखावा, भेड़चाल आदि) के कारण उसकी असलियत को जानना ही नहीं चाहते है-
यदि कोई बता दे तो वही व्यक्ति को हम दक़ियानूसी मानते है और इन मानसिक विकारों के कारण हमारे दिमाग मे सैकड़ों तर्क उठने लगते है, हमारी हर परम्पराओं मे वैज्ञानिकता थी , आज के लोग कब समझेंगे-
आपको पता है कि खड़े होकर खाने से क्या -क्या हानियाँ है -चलिए पढ़ ले लेख - वेसे करना तो आपको अपने ही मन की है ही -आखिर प्रतिष्ठा कम न हो - फिर भी जान ले -
विवाह समारोह आदि मे मेहमानो को खड़े होकर भोजन करने से मेहमान का अपमान होता है-
यजमान और मेहमान के लिए भोजन की व्यवस्था के बगैर सफल नही होता। मनुष्य के जीवन में आहार निंद्रा मैथुन का बहुत ही महत्व है। आहार या भोजन सभ्य समाज में यजमान और मेहमान के लिए आदर सम्मान का प्रतीक है- आज से 30-35 साल पहले घर में मेहमान आता था या किसी प्रसंग में जाते थे तो मान मनुहार और अड़ोसी पडोसी को बुलाकर आदर सहित आसन पर बैठाकर पाटले पर थाली रखकर आग्रह पूर्वक खाने की वानगी परोसकर भारतीय परंपरा से जिमाते थे जिसमे यजमान आग्रह करता था और मेहमान ना ना करते हुए आवश्यकता से अधिक प्रसन्नता से खाते थे तथा जाते जाते उन्हें भी आने का न्योता देते थे और जब कभी यजमान मेहमान बनकर जाते थे तो उनसे बदला न ले रहे हो इस प्रकार उन्हें ठूस ठूस कर आग्रह से खिलाते थे-
समय बदलता रहा ज्यादातर लोग देशावर आ गये पैसे कमाने की होड़ में पड़ गये मेहमानों के लिए समय ही नही है- इसी प्रकार शादी ब्याहों में रात्रि भोजन में हजारो महमानो को बुलाते है स्वरुचि भोज के नाम पर खड़े खड़े खिलाते है हर काउन्टर पर लाइन में लेकर हाथ की डिश में रखकर भीड़ में एक दुसरे से बचके बचाकर खाना खाते देखा जाता है जहाँ न तो लड़के या लडकी पक्ष वाले कही दूर तक नजर नही आता है सिर्फ दीखते है तो catters के लोग या PRO-इसी प्रकार धार्मिक सम्भारम्भ में भी भोजन करने के लिए स्वरुची भोजन ही रखते है- वो ही खड़े खड़े खाने का, खिलाने का फैशन चल पड़ा है जो शास्त्रोक्त या वैज्ञानिक दृष्टि से उचित नही है- आगुन्तको या मेहमानों को खाना राजशाही अंदाज़ में गद्दी तकिया पाटला बिछाकर खिलाने से जयणा का पालन होता है जितना खा सकता है उतना ही लेगा, झूठा नही छूटेगा, जिससे अन्नपूर्णा देवी का सम्मान होगा-
खड़े होकर भोजन करने से हानियाँ-Buffet System's disadvantage-
खड़े होकर भोजन करने से निचले अंगों में वात रोग (कब्ज, गैस, घुटनों का दर्द, कमर दर्द आदि) बढ़ते है और फिर आप जानते ही है कि कब्ज बीमारियों का बादशाह है -
खड़े होकर खाना खाना खाने से मोटापा, अपच, कब्ज, असि़डिटी आदि पेट संबंधी बीमारियां होती हैं-
खड़े होकर भोजन करने से कब्ज की समस्या होती है इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि जब हम खड़े होकर भोजन करते हैं तो उस समय हमारी आंते सिकुड़ जाती हैं और भोजन ठीक से नहीं पच पाता है-
खड़े होकर भोजन करने से यौन रोगो की संभावना प्रबल होती है जिसमे नपुंसकता, किडनी की बीमारियाँ, पथरी रोग-
पैरो में जूते चप्पल होने से पैर गरम रहते है जबकि आयुर्वेद के अनुसार भोजन करते समय पैर ठंडे रहने चाहिए- इसलिए हमारे देश में भोजन करने से पहले हाथ के साथ पैर धोने की परंपरा है -
बार बार कतार मे लगने से बचने के लिए थाली को अधिक भर लिया जाता है जिससे जूठन अधिक छोडी जाती है और अन्न देवता का अपमान है खड़े होकर भोजन करने की आदत असुरो की है भारतीयों की नहीं -
जिस पात्र मे परोसा जाता है वह सदैव पवित्र होना चाहिए- लेकिन इस परंपरा में झूठे हाथो के लगने से ये पात्र अपवित्र हो जाते है - और एक ही चम्मचा का प्रयोग होने से हम सब सामूहिक झूठन खाते है -
पंगत मे भोजन कराने से उस व्यक्ति की शान होती है वह व्यक्ति गुणी होता है-
बैठ कर खाने से स्वास्थ-लाभ-
जमीन पर सुखासन अवस्था में बैठकर खाने से आप कई स्वास्थ्य संबंधी लाभ प्राप्त कर शरीर को ऊर्जावान और स्फूर्तिवान बना सकते हैं जमीन पर बैठकर खाना खाते समय हम एक विशेष योगासन की अवस्था में बैठते हैं, जिसे सुखासन कहा जाता है- सुखासन पद्मासन का एक रूप है सुखासन से स्वास्थ्य संबंधी वे सभी लाभ प्राप्त होते हैं जो पद्मासन से प्राप्त होते हैं-
बैठकर खाना खाने से हम अच्छे से खाना खा सकते हैं इस आसन से मन की एकाग्रता बढ़ती है जबकि इसके विपरीत खड़े होकर भोजन करने से तो मन एकाग्र नहीं रहता है-
इस प्रथा बदले और रोगों से खुद को सुरक्षित भी करे-