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अर्थशास्त्रीयों के दृष्टीकोण में नोटबंदी

30 नवम्बर 2016

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जब से देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबंदी का ऐलान किया है तब से इस फैसले पर अलग-अलग प्रतिक्रिएं नजर आ रही हैं। हमारे देश के अलग-अलग लोग अपनी राय रख रहे हैं जिनमें से कुछ लोग इसकी तारीफ कर रहे हैं तो वहीं पर कुछ लोग विरोध भी जता रहे हैं जिससे ऐसा लग रहा है जैसे पूरी दुनियाँ दो पक्षो में बंट गई है। वर्तमान समय में लगभग सभी राजनैतिक दलें नोटबंदी के खिलाफ खड़े हो गए हैं लेकिन मात्र जनता दल यूनाईटेड खुलकर नोटबंदी की तारीफ कर रही है। वहीं मीडिया के लोगों के मध्य भी नोटबंदी को लेकर अलग-अलग राय अवश्य हैं। दुनिया के नामी अर्थशास्त्रीयों एवं उद्धोगपतियों जैसे लोग भी देश में नोट बंदी को लेकर आपस में बंटे हुए नजर आ रहे हैं। जहाँ नोबेल प्राइज़ विजेता देश के अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन नोट बंदी जैसे निर्णय से खुश नहीं है। उन्होनें एक अंग्रेजी अखबार के साथ हुए एक साक्षात्कार में प्रोफेसर सेन ने सरकार के नोट बंदी के इरादे और अमल पर सवाल उठाते हुए कहा है कि यह निरंकुश कार्रवाई जैसी है और यह सरकार की "अधिनायकवाद प्रकृति" का ही खुलासा करती है। प्रोफेसर सेन ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि लोगों को यह बात अचानक बताना कि उनके पास जो करेंसी है उसका इस्तेमाल नहीं हो सकता, यह फैसला अधिनायकवाद जैसा है प्रोफेसर सेन का कहना है कि केवल एक मात्र तानाशाही सरकार ही लोगों को इस तरह का कष्ट दे सकती है। देश के लाखों बेगुनाह और निरीह लोग अपने स्वयं के ही पैसे वापस लाने की कोशिश में पीड़ा, असुविधाओं और अपमान का सामना कर रहे हैं। विदेश में जमा काले धन को देश में वापस लाने जैसे वादें में मौजूदा सरकार विफल हुई। वहीं पर डी. सुब्बाराव जैसे अर्थशास्त्री एवं देश के रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव ने सरकार के नोटबंदी के कदम की सहराना करते हुए यह कहा है कि नोटबंदी से भ्रट्टाचार कम होगा तो वहीं पर कम अवधि में नोटबंदी विकास को चोट पहुंचा सकती है लेकिन इस सबका दूरगामी प्रभाव होने के अलावा यह देश के लिए फायदेमंद ही साबीत होगा। देश की सरकार एवं रिज़र्व बैंक संक्रमण को जितने सही तरीके से स्थिति को संभालेगी उतना ही कम इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, साथ ही साथ उनका ऐसा भी मानना हैं कि रियल स्टेट जैसे कारोबार काले धन के लिए एक सुरक्षित ठिकाना बन गया था। जिस पर नोटबंदी जैसे फैसले लिए जाने के बाद इस पर अंकुश लगाया जा सकता है। इसके साथ ही मकान-जमीन जैसे स्थाई संपत्तियों की कीमतों में भी कमी के अलावा किरायो में भी कमी आ सकती है। नोटबंदी के कारण सरकार की आय में भी सुधार होगा लोगों की अघोषित आय पर टैक्स एजेंसी की नजर रहने पर उन पर कड़ी कर्रवाई की जा सकती है। अर्थशास्त्री डी. सुब्बाराव का मानना है कि जहाँ नोटबंदी के कारण देश के निजी क्षेत्रो में निवेश बढ़ेगा, वहीं पर आर्थीक प्रणाली को ठीक करने से बचत और निवेश पर सकारात्मक असर होगा। सुब्बाराव का कहना है कि नोटबंदी की वजह से लोग कैशलेस ट्रांजेक्शन की ओर रुख करेगें जिसके कारण भ्रष्टाचार तो कम होगा ही साथ ही साथ देश का विकास भी होगा। देश में नोटबंदी की आलोचना करते हुए मॉर्गन स्टेनली मुख्य वैशिवक रणनीतिकार रुचिर शर्मा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा बड़े नोटों के समाप्त किये जाने से वर्तमान समय में कुछ छिपा धन नष्ट अवश्य हो सकता है लेकिन जहाँ देश के लोगों की संस्कृति और संस्थाओं में गहरे परिवर्तन के अभाव के कारण इस तरह की काली अर्थव्यवस्था का पुनर्जन्म हो जायेगा। एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित हुए एक अनुच्छेद में उनके द्वारा लिखा गया है कि केवल प्रणली जरिये काले धन को देश से खत्म करने मात्र से ही भारत विकास की उम्मीद नहीं कर सकता है। जैसा कि रुचिर का ऐसा कहना है कि अन्य न्यून आय वाले देशों की तरह भारत की भी आर्थव्यवस्था नकदी पर ही निर्भर करती है। देश की जीडीपी में बैंक जमाकर्ताओं का योगदान 60 प्रतिशत है इस तरह के प्रतिशत् को एक गरीब देश के लिए बहुत ही अच्छा माना जा सकता है, लेकिन रुचिर शर्मा का कहना है कि भारत ही नही दूनियाँ के अन्य देश जैसे सोवियत यूनियन, नार्थ कोरिया और ज़िम्बाब्वे ने जैसे देशो ने भी अपने यहाँ की बड़े नोटों को खत्म करने के लिए कठोर कदम उठा चुकें हैं जैसा कि रुचिर मानते हैं कि यदी भारत जैसा देश अपने यहाँ मौलिक रुप से कुछ करना चाहता है तो बैंकिंग प्रणाली के निजीकरण की आवश्यकता है जहाँ पर सरकार का मालिकाना प्रतिशत अधिक है इस तरह की भगीदारी दूसरे लोकतांत्रिक देशों में कम ही देखने को मिलता है। देश के नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया के अनुसार देश में मौजूदा नकदी का संकट अगले तीन महीनो तक बना रह सकता है। केवल इतना ही नही, नोटबंदी की बजह से देश की आर्थिक गतिविधियों पर भी नीशिचत रुप से असर पड़ने के अलावा देश की बृद्धि दर भी प्रभावित होगी। पनगढ़िया का बयान इसलिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता हैं क्यों कि मौजूदा समय में नीति आयोग के अध्यक्ष स्वमं प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी हैं। अरविंद पनगढ़िया ने शुक्रवार 25 नवम्बर 2016 की शाम "एशिया सोसायटी" में हुए एक कार्यक्रम में उन्होनें कहा कि देश की इस समस्या को धीरे-धीरे सुलझाई जा रही है। देश की अर्थव्यवस्था में जिस गति से हम नकदी डालने पर काम कर रहे हैं उसके मद्देनजर ज्यादा से ज्यादा एक तिमाही तक नोटों की कमी बनी रह सकती है। देश के अन्य अर्थशास्त्रीयों में से अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक ने नोटबंदी को लेकर अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा है कि हैं कि नोटबंदी से देश में आर्थिक मंदी जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। प्रोफेसर पटनायक के अनुसार नोटबंदी जैसे फैसले से काले धन पर कोई अधिक प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। लेकिन वहीं पर अर्थशास्त्री राजीव कुमार ने सरकार के नोटबंदी के निर्णय की तारीफ करते हुए कहा है कि यह एक साहसिक कदम है और इससे कालाधन पर अंकुश लगाया जा सकता है। जैसा कि राजीव मानते हैं कि देश में काले धन की अर्थव्यवस्था की कुल राशि 30 लाख करोड़ रुपये के करीब है, यदि इस राशि की पचास प्रतिशत हिस्सा भी 500 और 1000 रुपये के नोटों के रुप में हैं तो इस कदम से सीधे 15 लाख करोड़ रुपये बैंक डिपाजिट के जरिए प्रत्यक्ष अर्थव्यवस्था में आ सकते हैं। वहीं पर नंदन नीलकेणि जैसे अर्थशास्त्रीयों का मनना है कि नोटबंदी डिजिटल इकानॉमी को प्रोत्साहन देगा जो की भारत के लिए जरुरी है। काले धन पर किताब लिखने वाले और इस पर काफी काम करने वाले प्रोफेसर अरुण कुमार ने नोटबंदी को एक नासमझ कदम जैसा बताया है।

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रवि

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रवि कुमार

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