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सर्जिकल स्ट्राइक पर राजनीति क्यों ?

16 अक्टूबर 2016

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अभी हालिया दौर मे सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक के श्रेय लेने को लेकर आपस में छिड़ी कुतर्कीयों के बीच शुरू हुए तकरार के बीच यह कहना पड़ता है कि सन् 1971 में बांग्लादेश युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंन्दिरा गांधी ने बिहार और उत्तर प्रदेश के राज्यों में समय से पूर्व ही विधानसभा के चुनाव करवा दिए थे। उस समय चुनाव कराने के पिछे 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध में विजय प्राप्त करने का लाभ उस समय होने वाले चुनाव में उठाने के लिए किया गया था। इन राज्यों में इससे पहले वर्ष 1969 में मध्यावधि चुनाव हुए एवं अगला चुनाव वर्ष 1974 में होना था, लेकिन इस लम्बे समय के अन्तराल में होने वाले चुनाव में शायद युद्ध में मिली सफलता के कारण जनता में पैदा हुई जोश और उत्साह ठंडी पड़ चुकी होती ऐसी अवस्था मे जीत का लाभ कांग्रेस शयद ही उठापाती। दरसल उस वक्त एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी जय प्रकाश नारायण एक राजनेता के रूप में उभर चुके थे। उन्हें वर्ष 1970 में इंन्दिरा गाँधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाने जाते थे। इंन्दिरा गाँधी को पदच्युत करने के लिये उन्होने देश में एक ट्टसम्पूर्ण क्रांतिट्ट नामक आन्दोलन चलाया। जय प्रकाश नारायण एक समाज-सेवक होने के कारण भरत में ट्टलोकनायकट्ट के नाम से भी जाने जाते थे। वर्ष 1977 में पहली बार केंद्र की शासन-सत्ता से कांग्रेस का पूरी तरह सफाया हो गया था। यह आंदोलन इंन्दिरा सरकार के खिलाफ जन असंतोष के कारण पैदा हुआ था। उस समय इंन्दिरा गाँधी ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेंद्र कुमारी वाजपेयी के विरोध के बावजूद उत्तर प्रदेश विधान सभा का चुनाव समय से पूर्व कराने का फैसला किया। श्रीमती वाजपेयी ने तो सार्वजनिक रूप से यह भी कह दिया था कि चुनाव आवश्यक प्रतीत नहीं होता। बिहार में 1969 के बाद से कई बार मंत्रिमंडल भी बने, वहाँ पर कांग्रेस नेतृत्व की एक मिलीजुली सरकार चल रही थी, लेकिन उस सरकार में राजनीति क अस्थिरता फैली हुई थी। इसलिए बिहार में समय से पूर्व चुनाव कराने का फैसला कहीं एक हद तक सही कहा जा सकता है, उस समय उत्तर प्रदेश विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के 230 विधायक थे। वर्ष 1971 मंल कमलापति त्रिपाठी जी उत्तर प्रदेश में एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार चला रहे थे। उस दरमियान उनकी सरकार पर किसी भी तरह का कोई खतरा नहीं था, लेकिन उस वक्त यह स्पष्ट नहीं था कि वर्ष 1974 के आम चुनाव का नतीजा किसके पक्ष में होगा। वर्ष 1969 के अगस्त महीने में कांग्रेस पार्टी का विभाजन हुआ था। उस वक्त उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के चंद्रभानु गुप्त एक बड़े प्रभावशाली नेता हुआ करते थे लेकिन कांग्रेस पार्टी में विभाजन हो जाने के बाद वह इंन्दिरा गाँधी के साथ नहीं गए। वर्ष 1971 के पाकिस्तान और बांग्लादेश युद्ध मे मिली जीत से एक नये राष्ट्र बांग्लादेश का उदय हुआ जाहिर सी बात थी कि कांग्रेस को इसका चुनावी लाभ मिलना तय था। कांग्रेस उन दिनों इसका लाभ उठाने से नहीं चूकि। इन सबके ठिक विपरीत हाल में जब भारतीय सेना ने उसने नियंत्रण रेखा पार कर सर्जिकल स्ट्राइक के घोषणा की तो कांग्रेस पार्टी एवं कुछ अन्य दलों के कुछ एक नेताओं ने इस अपरेशन के सबूत भी माँग लिये। यहाँ तक की कांग्रेस के एक नेता ने सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कार्यवाही को फर्जी तक बता डाला। बाकी बची& खुची कसर राहुल गाँधी ने यह कह पूरी कर दी कि प्रधानमंत्री जवानों के खून के पीछे छिपे हैं। सर्जिकल स्ट्राइक को फर्जी बताने के पीछे शायद यही मंशा रही है कि कहीं भाजपा को उत्तर प्रदेश में होने वाले आगामी चुनाव मे इसका लाभ नही मिल पाए। युद्ध में जब-जब देश जीता उसका चुनावी लाभ उस समय केन्द्रिय सत्ता में आसीन सरकार को ही मिलना वाजिव सी बात है। इन सबके बावजूद इंन्दिरा कांग्रेस युद्ध में मिली सफलता का चुनावी लाभ उठाने की कोशिश के लोभ का संवरण नहीं कर सकीं। इस तरह वर्ष 1972 में देश के कई राज्यों में एक साथ विधान सभाओं के चुनाव हुए थे। स्न 1971 में हुए युद्ध से निःसंदेह हम वर्तमान समय के सर्जिकल स्ट्राइक की तुलना नही कर सकते हैं, लेकिन विरोधी दलों के नेतागण इस सैन्य कार्रवाई पर जिस तरह सबूत माँग कर सवाल उठा रहे हैं उससे तो यही लग रहा है कि कहीं आगामी वर्ष में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा इस सैनिक कार्यवाही की सफलता का न तो चर्चा कर सके और नही इसका श्रेय ले सके। अभी तो उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव होने में कुछ समय शेष है। पता नही उस समय तक फिर से पाकिस्तान व आतंकी कौन सा नये गुल खिलाते हैं यह कहना अभी से संभव नहीं है।
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