यह किताब मेरे गीतों का संग्रह है। जो मैंने अपने आप को व्यक्त करने के लिए लिखें है। शब्दों को, दैनिक समस्याओं को व्यक्त करती यह रचना मैं आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूं। मैं चाहती हूं कि आप इसकी समीक्षा लिखें।
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Good writer this is a good book i read it it was very interesting book
अच्छी रचना यथार्थ की झलक मिलता है।🙏🙏
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हम दुनिया नई बनाएंगेइस धरा पर स्वर्ग लाएंगेसपने नए सजाएंगेलोगों के दिलों में नए अरमान जगायेंगेभटके हुए को राह दिखाएंगेगरीबों को न्याय दिलवा येगेहम दुनिया नई बनाएंगेनिरक्षरो को पढ़ाएंगेरोते हुए को हंसा
समुद्र की लहरों की तरहचलता रहता है जीवनछोड़ जाती है लहरें अनगिनतमोती ,शंख और भी ना जाने क्या-क्या किनारे पर, फिर लौट जाती है वापसदोबारा वापस आने के लिएयही क्रम चलता रहता है बार-बारऐसे ही चलते रह
शिक्षा का प्रकाश फैलाता हैअज्ञानता को दूर भगाता हैजीवन की कठिन राहों मेंमार्ग दिखाता है शिक्षकजब जीवन के कठिन सवालों मेंउलझ जाते हैं हमतब ढाढंस बंधा हलनिकालता है शिक्षकमगर आज गूगल ज्ञान बांट रहा हैकंप
मीरा की प्रीत तुम ही होसुदामा के मीत तुम्ही होगोवर्धन के रखवालेब्रज में गाया जाने वाला गीत तुम ही होराधा की प्रीत तुम ही होगोपियों के मीत तुम ही हो वृंदावन में बंसी बजाने वालेसंगीत तुम ही होरुकम
रख हौसला तूवक्त बदल जाएगातेरी मेहनत के आगेखुदा भी झुक जाएगारख हौसला तूमुश्किलें हार जाएंगीतेरे कर्म से तेराभाग्य भी बदल जाएगाहौसला है अगर तुझ मेंकोई भी मुश्किल तुझेना हरा पाएगीडगरकितनी भी कठिन होसफलता
विकास की अंधी दौड़ मेंहमने प्रकृति को रौंदा हैपेड़ों को काटा हैजंगलों को खोया है।हमने जल का स्तर गिरा दिया हैनदियों में कूड़ा बहा दिया हैफिर हम बार-बार कहते हैंप्रकृति हमसे नाराज क्यों है?नदियों में ब
मन होता जब खुशकागज कलम उठाती हू पन्नों से बांटकर अपने कोखुशियां में पाती हूंमन होता जब व्यथितअश्रु ओ,की धार बहती हैतब भी कागज कलम सेमेरी दोस्ती ऐसे ही रहती हैंमन होता जब अकेलातब भी कागज पन्नो के
मेरे शहर से गांव की ओर सड़केंपहले रहती थी पेड़ों से हरी-भरीपर अब वीरान हो गई हैपेड़ काट रहे हैं दोनो ओर केक्योंकि सड़कें चौड़ी हो रही हैदेखती हूं उनको तो समझ में आता हैशहरों का विकास बहुत कुछ वीरान कर
मां तू ही मेरी मीत हैतू ही मेरी प्रीत हैतू ही मेरा प्रथम शिक्षकतू ही मेरा संगीत हैपकड़ कर तेरा आंचलमैंने चलना सीखा हैसुन सुन कर तेरी कहानीमैंने बोलना सीखा हैपकड़कर तेरे हाथमैंने लिखना सीखा हैजब जब मैं
देखो मंदिर के कलश को कैसा चमक रहा हैसबसे ऊपर बैठकरकैसा मचल रहा है।पर भूलना नहीं तुमनीव के उन पत्थरों कोजो हो गए दफन जमीन मेंजिनके ऊपर यह बना सुंदर मंदिर।उनके त्याग समर्पण पर हीयह मंदिर बन पाया ह