समुद्र की लहरों की तरह
चलता रहता है जीवन
छोड़ जाती है लहरें अनगिनत
मोती ,शंख और भी ना जाने क्या-क्या
किनारे पर, फिर लौट जाती है वापस
दोबारा वापस आने के लिए
यही क्रम चलता रहता है बार-बार
ऐसे ही चलते रहते हैं हम जिंदगी में
ना जाने कितने सपने बुनते हैं
ना जाने कितने इच्छाएं करते हैं
सफलता की धुन में
आगे बढ़ने की मस्ती में
हम कितना कुछ इकट्ठा करते हैं
कितना कुछ जोड़ते हैं
हम भूल जाते हैं
हमें भी वापस जाना है लहरों की तरह
तब साथ हम कुछ भी ना ले जाएंगे
बस वापस अकेले चले जाएंगे
इसलिए हे मानव तू
जीवन का मूल्य पहचान
जितने दिन है इस धरा पर
रोशनी बिखेर दे
अपने जीवन से सारी दुनिया को
एक नया मोड़ दे
बुद्ध की तरह ज्ञान फैला दे
मीरा की तरह जीवन ईश में लगा दे
ना हो सके कुछ तो
दीपक बनकर तू खुद जल
और रोशनी दूसरों को दिखा दे।
(© ज्योति)