बह्र- 221 2121 1221 212 यूँ जिंदगी की राह में मजबूर हो गए , काफ़िया- मोती, ओती स्वर, रदीफ़- उठा लिया"गज़ल" निकला था सीप से कहीं मोती उठा लियामैने भी आज दीप से ज्योती उठा लियाखोया हुआ था दिल ये किसी की तलाश मेंमहफिल थी द्वंद की तो चुनौती उठा लिया।।जलने लगी थीं बातियाँ लेकर मशाल कोमगरूर शाम जान सझौती उठा